शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

जाति प्रमाण पत्र के सत्यापन हेतू 1950 का लैण्ड रिकार्ड होना जरूरी नहीः उच्च न्यायालय बिलासपूरः अगस्त 09, 2012:

हाईकोर्ट ने जाति प्रमाण पत्र को लेकर दायर याचिका की सुनवाई करते हुए उच्चस्तरीय जाति छानबीन समिति को 1950 के लैण्ड रिकार्ड के बिना ही जाति प्रमाण पत्र सत्यापित करने का आदेश दिया है।  याचिकाकर्ता  दुर्गावती झारी की नियुक्ति दाँतेवाड़ा जिले में ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी के पद पर हुई है, उसकी नियुक्ति महार जाति का लाभ देते हुए की गई। नियुक्ति के पश्चात कृषि विभाग द्वारा याचिकाकर्ता को सत्यापित जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने को कहा

गया। इस पर याचिकाकर्ता ने सत्यापित जाति प्रमाण पत्र के लिए उच्चस्तरीय जाति छानबीन समिति के समक्ष उपस्थित होकर जाति प्रमाण पत्र की माँग की। लेकिन समिति ने यह कहते हुए प्रमाण पत्र देने से इंकार कर दिया कि उसके पास वर्ष 1950 का लैण्ड रिकार्ड नहीं है।
      25 जून 2012 को उप संचालक कृषि ने एक पत्र जारी कर याचिकाकर्ता को 15 दिनों के भीतर जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने को कहा, अन्यथा नौकरी से पृथक करने की जानकारी दी गई। इससे क्षुब्ध होकर याचिकाकर्ता ने अधिवक्ता मतीन सिद्दिकी, संदीप सिंह व नरेंद्र के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका प्रस्तुत की। याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता की सारी पढ़ाई छत्तीसगढ़ में हुई है। पूर्व में एसडीएम द्वारा अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी किया गया। मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की एकलपीठ ने उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति को निर्देश दिया है कि वर्ष 1950 के लैण्ड रिकार्ड के बगैर याचिकाकर्ता को जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन उपलब्ध कराए। तथा तीन माह के भीतर जाति प्रमाण पत्र बनने तक उसके नियुक्ति के विरूद्ध कार्यवाही नहीं करने का आदेश दिया है।
     इसके पूर्व भी बिलासपूर उच्च न्यायालय केजस्टिस प्रशांत मिश्रा ने याचिकाकर्ता श्री संजय राज के मामले की सुनवाई करते हुए उच्च स्तरीय छानबीन समिति को 1950 के लैण्ड रिकार्ड के बिना जाति प्रमाण पत्र का सत्यापन करने का आदेश दिया था। एक अन्य मामले में भी बिलासपूर न्यायायलय द्वारा उच्च छानबीन समिति को दिशा निर्देश जारी किया गया था कि जाति प्रमाण पत्र का सत्यापन बिना लैण्ड रिकार्ड के बिना करें। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट निर्देश दिया था,कि वहव्यक्ति जो केंद्र सरकार की नौकरी में छत्तीसगढ़ में पदस्थ हैं वह उनकी पत्नी व बच्चे छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हैं। छत्तीसगढ़ शासन के कर्मचारी उसकी पत्नी व बच्चे छत्तीसगढ़ के नागरिक हैं। संवैधानिक पद पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त हुआ व्यक्ति उसकी पत्नी व बच्चे छत्तीसगढ़ के नागरिक होंगे। निगम एजेंसीकमिशन बोर्डबोर्ड के कर्मचारी व उनकी पत्नी व बच्चे छत्तीसगढ़ के नागरिक होंगे परंतु उनकी जाति प्रेसीडेंटल आर्डर में दर्ज होनी चाहिए।
     उच्च न्यायालय के द्वारा छ्त्तीसगढ़ सरकार को 1950 का लैंड रिकार्ड देखे बिना जाति प्रमाण पत्र सत्यापित करने के लिए निर्देशित करने के बावजूद छत्तीसगढ़ सरकार जाति प्रमाण पत्र माँगने वालों से 1950 का लैण्ड रिकार्ड प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करती रही है। यह सच है कि उच्च न्यायालय याचिकाकर्ताओं को ध्यान में रखते हुए फैसले देती है, और तत्काल उनके समस्याओं का निराकरण करने हेतू निर्देश जारी करती है। परन्तु क्या किसी एक व्यक्ति के पक्ष में दिया गया दिशा-निर्देश व स्थिति अन्य आरक्षित व्यक्तियों पर लागू नहीं होती। फिर सरकार क्यों उन आदेशों को आरक्षित वर्ग के सभी लोगों केलिए लागू नहीं कर देती। झारखण्ड तथा अन्य पड़ोसी राज्यों से आये हुए आरक्षित वर्ग के लोग छत्तीसगढ़ में वर्षों से राज्य तथा केन्द्र सरकार की सेवा में लगे हुए हैं। कई लोग 1950 से पूर्व छत्तीसगढ़ में आये और रच-बस गये, परन्तु उस दौरान वे जमीन खरीदी नहीं कर सके। उनके बच्चे छत्तीसगढ़ में ही पले बढ़े और शिक्षा प्राप्त की। परन्तु सिर्फ लैण्ड रिकार्ड नहीं होने के कारण आरक्षण के लाभ से उन्हें वंचित किया जा रहा है। हमारे बुद्धिजीवी प्रतिनिधि, आदिवासी नेता तथा राजनैतिक दल के नेताओं को भी इस बिषय पर सोचने के लिए फुर्सत नहीं है, या फिर वे भी उन्हें लाभ दिलाना नहीं चाहते। इन लोगों को चाहिए कि वे उच्च न्यायालय के इन आदेशों के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार पर दबाव डालकर जाति प्रमाण पत्र के सत्यापन में लैण्ड रिकार्ड की अनिवार्यता समाप्त कराए। उच्च न्यायालय ने पुनः कहा है कि जाति प्रमाण पत्र के लिए 1950 का लैण्ड रिकार्ड जरूरी नहीं है और इसके बगैर जाति प्रमाण पत्र का सत्यापन करने का निर्देश दिया है।

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