बुधवार, 23 नवंबर 2011

वैध सिगरेटों का कारोबार : छत्तीसगढ़ के धन और स्वास्थ्य ैध्सिगरेटेटों ें कारोबेबार आरैरै को लूटूट रहा है?

वैध सिगरेटों का कारोबार : छत्तीसगढ़ के धन और स्वास्थ्य ैध्सिगरेटेटों ें कारोबेबार आरैरै को लूटूट रहा है?ै?
छत्तीसगढ़ भारत में अवैध सिगरेटों की उपजाऊ भूमि के रूप में उभर कर सामने आया है। प्रदेश पूरे देश में अवैध
सिगरेटों के लिए एक बड़े बाज़ार का प्रतिनिधित्व करता है। जहां इन स्थानीय निर्मित टैक्स की चोरी करने वाली
सिगरेटों का छत्तीसगढ़ के सिगरेट बाज़ार का 9: हिस्सा है। यह चिंताजनक रूप से बड़ा और अच्छी तरह संगठित
व्यवसाय बनता जा रहा है, छत्तीसगढ़ में अवैध सिगरेटों के कुछ सबसे बड़े निर्माताओं की मदद से प्रदेश में हर महीने
7 मिलियन अवैध सिगरेटें बेची जाती हैं। फलस्वरूप, राज्य सरकार को वािर्षक 12 करोड़ रूपए के कर का नुक्सान
होता है।
भारत में सिगरेटों पर भारी कर, अवैध सिगरेटों के बाज़ार के बड़े होने व बढ़ने का प्रमुख कारण है। कुल तंबाकू
खपत का मात्र 15: हिस्सा के उपयोग के बावजूद, सिगरेट तंबाकू से होने वाले कुल कर राजस्व का 75: उत्पन्न
करती है। यूरोमानीटर report, इलिसिट trade इन टोबेको प्रोडक्ट्स में भारत अवैध सिगरेटों के लिए विश्व का छठा
सबसे बड़ा बाज़ार है।
हालांकि अवैध सिगरेटों की श्रेणी में, कालाबाज़ारी किए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड भी शामिल हैं। इनमें मूलत: छोटी,
बेईमान इकाइयों द्वारा gharelu स्तर पर शुल्क चोरी करके बनाई गई सिगरेटें शामिल हैं। ये इकाइयां सिगरेटों पर लगने
वाले उच्च उत्पाद व वैट शुल्क का भुगतान नहीं करती और लगातार बढ़ने वाले गुप्त व्यवसायों का संचालन करती
हैं। अवैध सिगरेटों में व्यापार के कारण, राष्ट्रीय खजाने को हर साल 2000 करोड़ रू. की वािर्षक राजस्व हानि होती
है।
छत्तीसगढ़ में, सिगरेटों पर वैट की वर्तमान दर 14: है। हालांकि यह 2007 में सभी राज्यों में लागू की गई वैट दर
12.5: से बहुत ज्यादा अधिक नहीं है, लेकिन इसमें 7.5: का प्रवेश कर भी जुड़ता है जो कुल कर को 21.5: तक
पहुंचा देता है। इसलिए छत्तीसगढ़ में सिगरेटों पर कर भुगतान में चोरी फायदे का सौदा बन गया है।
2008-09 व 2010-11 के केंद्रीय बजटों के बाद, अवैध सिगरेट निर्माताओं ने शानदार वृद्धि हासिल की, क्योंकि
केंद्रीय उत्पाद शुल्क असाधारण रूप से 42: तक बढ़ा दिया गया था। वैध सिगरेट निर्माताओं को 1 रू. व 1.50 रू.
प्रति सिगरेट वाले तत्कालीन वहनीय मूल्य वाली श्रेणी से हटना पड़ा और इस श्रेणी की मांग को तुरंत अवैध रेगुलर
size़ फिल्टर सिगरेटों ने पूरा किया जो इसे उपभोक्ताओं को 1 रू. प्रति सिगरेट (10 सिगरेटों के pack को 10/-
रू. में) पर बेचने लगे। अवैध सिगरेटें इस प्रकार उपभोक्ताओं को बीड़ी के दाम में उपलब्ध होने लगीें। अनियामक
packों पर 14-21 रू. का एमआरपी (डत्च्द्ध होता है लेकिन वे प्राय: 6-10 रू. में बेची जाती हैं। उपभोक्ताओं के एक
बड़े समूह को इन कीमतों को ना कहना मुश्किल होता है और इसके कुछ विशेष ब्रांडों को अपने आप को `आम
आदमी का ब्रांड´ स्थापित करने में मदद की है।
छत्तीसगढ़ में, अवैध ब्रांड जैसे मिडland एफटी, फुर्सत और नं ़10 एफटी भारी ग्राहक आधार के साथ बड़े खिलाड़ियों
के रूप में उभरे हैं। ये ब्रांड बाज़ारों, पान की दुकानों व हॉकरों के स्टालों पर आसानी से उपलब्ध हैं। वास्तव में
सिगरेट विक्रेता इन ब्रांडों को अपने पास रखना इसलिए पसंद करते हैं कि इनकी कम कीमतें भारी व्यापारिक मुनाफे
को सुनिश्चित करती हैं। पूरे छत्तीसगढ़ में, अवैध सिगरेटों के निर्माता व वितरक स्थानीय माफिया के सदस्य बनते जा
रहे हैं। अपरिहार्य रूप से माफिया व स्थानीय प्रशासन के बीच सांठगांठ होती है।
अवैध सिगरेट व्यापार के कारण छत्तीसगढ़ सरकार को होने वाला राजस्व नुक्सान चौंका देने वाला है। लेकिन अवैध
सिगरेट पीने वाले लोगों के स्वास्थ्य को होने वाले नुक्सान का आंकलन नहीं किया जा सकता। अवैध सिगरेटें,
धूम्रपान करने वालों के लिए उच्च स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न कर रही हैं क्योंकि इनमें निकृष्ट निर्माण प्रक्रिया, घटिया
गुणवत्ता वाले तंबाकू व निकोटिन के उच्च स्तर का प्रयोग होता है।
छत्तीसगढ़ व भारत के अन्य राज्यों में अवैध सिगरेटों का कारोबार तेज़ी से बढ़ रहा है। यह स्पष्ट रूप से यह दर्शाता
है कि सिगरेटों के विरूद्ध भेदभावपूर्ण कर नीति से कुछ तंबाकू खपत कम नहीं होती और न ही इससे करों की
वसूली में वृद्धि होती है। इससे केवल अवैध सिगरेट कारोबार में वृद्धि होती है और लोग अवैध सिगरेटों या अन्य
सस्ते तंबाकू उत्पादों की तरफ आकिर्षत होते हैं जो वैध रूप से उत्पादित सिगरेटों से होने वाले नुक्सान से कहीं
अधिक हानि पहुंचाते हैं।

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