19jan2011
भोपाल। नर्मदा किनारे के गावों में रेत खदानों पर तय मानकों से अधिक खुदाई से नर्मदा खतरे में पड़ सकती है। रेत खदानों पर अवैध उत्खनन हो रहा है। ऊपर की मिट्टी नदी में डालने से गाद की मात्रा बढ़ती जा रही है। इस बार नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं व 20 गावों के प्रतिनिधियों ने बड़वानी कलेक्टर संतोष मिश्र को ज्ञापन देकर अवैध रेत खदानों पर रेत उत्खनन तत्काल बंद कराने की माग की है। ऐसा नहीं होने पर उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाने व सड़कों पर मोर्चा खोलने की चेतावनी भी दी है।
इस बीच, राजस्व विभाग ने रेत खदानों से जब्त 23 ट्रक, तीन पोकलेन मशीनों को लाखों रुपये का जुर्माना कर छोड़ दिया है। साथ ही, अवैध उत्खनन पर भी लाखों रुपये की राजस्व हानि पर जुर्माना किया गया है। जुर्माने के बाद खदानों में उत्खनन फिर शुरू हो गया है।
मप्र की जीवनदायिनी नर्मदा के किनारों से रेत के अवैध उत्खनन के मामले सिर्फ बड़वानी जिले तक सीमित नहीं हैं। राजधानी से सटे होशंगाबाद जिले में भी रेत उत्खनन का अवैध कारोबार जमकर फला फूला है। सत्तारूढ़ भाजपा के कई नेताओं पर इस अवैध कारोबार में भागीदारी के आरोप भी लगते रहे हैं।
नर्मदा नदी सुरक्षित नहीं
ताजा प्रकरण बड़वानी का है। यहां के छोटा बड़दा, पेंड्रा, जागरवा, अवल्दा, छोटी कसरावद, भीलखेड़ा, पीपरी, पिछौड़ी, खापरखेड़ा सहित आसपास के करीब 20 गावों के प्रतिनिधियों ने गत दिवस कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर नारेबाजी की और ज्ञापन दिया। ग्रामीणों ने बताया छोटा बड़दा, छोटी कसरावद, पेंड्रा व अन्य गावों में अवैध रेत उत्खनन धड़ल्ले से जारी है। अंधाधुंध रेत उत्खनन से यहा की जमीन और नर्मदा पर खतरनाक असर हो सकता है। सरदार सरोवर बाध के डूब में आने वाले विस्थापितों की जमीन पर खुदाई की जा रही है। पर्यावरण की अनदेखी
नर्मदा बचाओ आंदोलन का कहना है कि इस संबंध में ग्रामीणों ने केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश, पर्यावरण विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष देवेंद्र पाडे, मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान एवं नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण के अध्यक्ष को भी शिकायत कर कार्रवाई की माग की है। रेत खदानों से नदी में डाली जा रही मिट्टी से गाद बढ़ रही है। इससे नर्मदा खतरे में पड़ जाएगी। बाध के जल संग्रहण क्षेत्र में यह कार्य होने से जलाशय की आयु पर भी असर पड़ेगा। नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण 1971 के निर्णायक फैसले के अनुसार जलाशय की सुरक्षा की जिम्मेदारी तीन राज्यों की है और मध्यप्रदेश ऐसा कोई एक तरफा निर्णय नहीं ले सकता, जिससे जलाशय को खतरा हो। यह न्यायाधिकरण का उल्लंघन होगा।
नर्मदा बचाओ आंदोलन का कहना है कि इस खुदाई में केंद्रीय खदान संबंधी नियमों और मध्यप्रदेश लघु खनिज नियम 1996 के साथ पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986 सहित कई कानूनी प्रावधानों और खेती-नदी पर्यावरण के हित में सर्वोच्च अदालत द्वारा पारित अनेक आदेशों का उल्लंघन हो रहा है। मध्यप्रदेश लघु खनिज नियम 1996 के अनुसार उत्खनन सार्वजनिक स्थान, नदी-नालों के किनारे, जलाशय, बाध आदि से 100 मीटर और ग्रामीण कच्चे रास्ते से 10 मीटर की दूरी के भीतर नहीं किया जाएगा, लेकिन यहा तो नर्मदा और जलाशय की प्रस्तावित सीमा से 20 से 40 मीटर की दूरी पर हो रहा है।
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