रविवार, 9 जनवरी 2011




वीर शंकर शाह, रघुनाथ शाह, ठक्कर बापा जनजातीय राष्ट्रीय सम्मान का अलंकरण 11 जनवरी को

रवीन्द्र भवन में लोकनृत्य एवं विविध जनजातीय कार्यक्रमों भी होंगे
Bhopal: Sunday, January 9, 2011:

--------------------------------------------------------------------------------


मध्यप्रदेश शासन आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति कल्याण विभाग द्वारा स्थापित देश के दूसरे जनजातीय राष्ट्रीय सम्मान का तीन दिवसीय अलंकरण समारोह 11 जनवरी 2011 को शाम 7.00 बजे से रवीन्द्र भवन भोपाल में आयोजित किया जायेगा। समारोह में वर्ष 2009 के वीर शंकरशाह-रघुनाथशाह राष्ट्रीस सम्मान तथा ठक्कर बापा राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया जायेगा।

अलंकरण समारोह में माननीय आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री कुँवर विजय शाह, संस्कृति, जनसंपर्क एवं उच्च शिक्षा मंत्री, माननीय श्री लक्ष्मीकांत शर्मा एवं माननीय आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति कल्याण राज्यमंत्री, श्री हरिशंकर खटीक अतिथि होंगे। मध्यप्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है जहां जनजातीय विषयक राष्ट्रीय स्तर के सम्मान स्थापित किए गए हैं। भोपाल में आयोजित होने वाले जनजातीय अलंकरण समारोह में वीर शंकर शाह-रघुनाथ शाह राष्ट्रीय सम्मान से श्री जिव्या सोमा माशे, महाराष्ट्र एवं डॉ. महेन्द्र कुमार मिश्रा, भुवनेश्वर को संयुक्त रूप से तथा ठक्कर बापा राष्ट्रीय सम्मान से वनबंधु परिषद, कोलकाता को सम्मानित किया जायेगा। साथ ही सम्मानित विभूतियों को प्रति सम्मान 2.00 (दो) लाख रुपये की सम्मान निधि एवं प्रशस्ति पटि्टका प्रदान की जायेगी।



भारतीय साहित्य में जनजातीय जीवन के सृजनात्मक सौंदर्य, परंपरा और विशिष्टता के उत्कृष्ट रेखांकन, लेखन में सुदीर्घ योगदान तथा आदिवासी पारंपरिक कलाओं के क्षेत्र में उल्लेखनीय साधना के लिए देय है। इस सम्मान के लिए गठित उच्चस्तरीय समिति के माननीय सदस्यों डॉ. जयदेव तनेजा, नई दिल्ली, श्री ज्योतिन्द्र जैन, नई दिल्ली, श्री रमाकांत रथ, उड़ीसा एवं डॉ. देवराज बिरदी, भोपाल द्वारा सर्वसम्मिति से श्री जिव्या सोमा माशे, महाराष्ट्र एवं डॉ. महेन्द्र कुमार मिश्रा, भुवनेश्वर को संयुक्त रूप से का चयन किया गया। वर्ष 2009 के द्वितीय वीर शंकर शाह-रघुनाथ शाह सम्मान से विभूषित श्री जिव्या सोमा माशे ने आदिवासी जीवन और परंपराओं को सदियों पुरानी आदिवासी वर्ली चित्रशैली को अपने कलागत संस्कारों और सृजन साधना से नवविकसित स्वरूप प्रदान किया है। आपका वर्ली के सृजन परिवेष में महज तेरह वर्ष की आयु में प्रवेष हुआ। और अपने जीवन के लगभग सात दशकों के अंतराल में आपने एकाग्र निष्ठा का परिचय देते हुए जनजातीय चित्रकला को समुन्नत करने और उसके शैलीगत अभिप्रायों से लोकरुचि का नया सेतु तैयार करने में ऐतिहासिक योगदान दिया है। साथ ही आदिवासी जीवन और संस्कृति के बहुआयामी अध्ययन, शोध, सर्वेक्षण, संग्रह तथा लेखन हेतु सतत सक्रिय डॉ. महेन्द्र कुमार मिश्रा का जन्म एक अप्रैल 1952 को उड़ीसा प्रांत के गांव लिटिगुडा (कालाहांडी) में हुआ। उड़िया भाषा और साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत आपने कालाहांडी के आदिवासी और लोक परंपरा के विविध पक्षों पर शोधात्मक विवेचन करते हुए पीएच.डी. प्राप्त की। डॉ. मिश्रा की विशेषज्ञता अपने अंचल की बोलियों के साहित्य को लेकर रही हैं। इस गहरे रूझान को उन्होंने छह पुस्तकों में संग्रहित किया है, जिनमें लोक साहित्य, वाचिक कथाओं, प्रदर्शनकारी कलाओं तथा पारंपरिक प्रविधियों से जुड़े विषद् अध्ययन की सप्रमाण प्रस्तुति की है। इसके अतिरिक्त गोंड समाज और संस्कृति, कालाहांडीरा कला और संस्कृति सहित अन्य विषयों की आवृत्ति में भी आपने विवेचना की है। डॉ. मिश्रा ने उड़िया में कई महत्वपूर्ण अनुवाद भी किए हैं, जिन्हें प्रमुख प्रकाशन संस्थानों ने पुस्तकाकार प्रकाशित किया गरीब, पीड़ित और हर तरह से पिछड़े आदिवासी समुदाय के लोगों के प्रति प्रेम समदृष्टि, ममतापूर्ण सेवा एवं सुदीर्घ साधना के देय है। इस सम्मान के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति के माननीय सदस्या श्री ओम थानवी, नोएडा, श्री अच्युतानंद मिश्र, भोपाल, सुश्री गीताश्री, नई दिल्ली, प्रो. बन्धु भगत, रांची, झारखण्ड, श्री स्नेहमय राय चौधरी, त्रिपुरा, डॉ. देव राज बिरदी, भोपाल, श्री संजय बंदोपाध्याय, भोपाल द्वारा सर्वसम्मिति से वनबंधु परिषद, कोलकाता का चयन यिका गया। वर्ष 2009 के द्वितीय ठक्कर बापा राष्ट्रीय सम्मान से विभूषित वनबंधु परिषद, आदिवासी अंचलों में अशिक्षा उन्मूलन के महाअभियान में लगभग दो दसकों से संलग्न है। एक ऐसा संगठन जिसमें भारत के पिछड़े और उपेक्षित ग्रामीणों और वनवासी समुदाय को निरक्षरता से उबारने के साथ ही उन्हें स्वास्थ्य, रोजगार तथा समग्र विकास से जुड़े सरोकारों और मौलिक अधिकारों के प्रति जागृत करने की मुहिम छेड़ी है। परिषद की सकारात्मक सामूहिक कोशिशों का ही परिणाम है कि आज भारत में इस संस्था की 27 शाखाएं संचालित हैं और 32 हजार एकल शिक्षक विद्यालयों के माध्यम से शिक्षण कार्य जारी है। जिससे लगभग आठ लाख बीस हजार ग्रामीण आदिवासी विद्यार्थियों के लाभांवित होने का कीर्तिमान परिषद के सफल उद्यम का उदाहरण है।

इस अवसर पर विभागीय उपक्रम वन्या द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका 'समझ-झरोखा' के बैनर तले आयोजित आदिवासी जीवन विविध रंगों पर केन्द्रित छायांकन प्रतियोगिता 'प्रतिबिम्ब' के विजेताओं को भी पुरस्कृत किया जायेगा। इस प्रतियोगिता में प्राप्त 55 चित्रकारों की कुल 157 प्रतिवष्टियों में से श्रेष्ठ छायाचित्र के लिए श्री देवेन्द्र, रतलाम, प्रथम (इनोसेंट स्माईल), श्री कैलाश मित्तल, इंदौर, द्वितीय (रिटर्निंग होम) तथा श्री राजेन्द्र मालवीय, इंदौर, तृतीय (स्कूल चलें हम) पुरस्कार प्रदान किया जायेगा। साथ ही प्रोत्साहन पुरस्कार श्री नितिन खत्री, इंदौर (ब्यूटीफुट स्माईल), श्री मानित ए. बाल्मीकि, महाराष्ट्र (बैगा मदर एण्ड चाईल्ड), श्री रमेश सोनी, धार (दांतून) तथा श्री जगदीश मालवीय, रतलाम (आदिवासी बालक/बालिका नदी में कपड़े धोते हुए) को प्रदान किया जायेगा। इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार स्वरूप राशि रुपये 31 हजार, द्वितीय पुरस्कार स्वरूप 21 हजार, तृतीय पुरस्कार स्वरूप 11 हजार तथा प्रोत्साहन पुरस्कार स्वरूप 2,501 रुपये राशि एवं प्रशस्ति पटि्टका प्रदान की जायेगी।

उन्होंने बताया कि समारोह में आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा गोंड परधान गायकी परंपरा के प्रख्यात चित्रकार जनगढ़ सिंह श्याम की स्मृति में स्थापित 'जनगढ़ सिंह श्याम' पुरस्कार (वर्ष 2009) से प्रख्यात जनजातीय कलाकार श्री शंभुदयाल श्याम को विभूषित किया जायेगा। इस पुरस्कार में उन्हें राशि रुपये 25 हजार नगद एवं प्रशस्ति पटि्टका प्रदान की जायेगी। श्री शाह ने बताया कि इस पुरस्कार हेतु 22 आदिवासी कलाकरों से कुल 26 चित्रकृतियां प्राप्त हुई थीं जिसके चयन हेतु गठित उच्चस्तरीय चयन समिति ने जनजातीय कलाकार श्री शंभुदयाल श्याम की चित्रकृति को सर्वसम्मिति से इस पुरस्कार हेतु चुना। उनकी चित्रकृति में आदिवासी मानस, कलात्मक कौशल और सौंदर्य समग्रता का सुमेल है।

श्री तिवारी ने बताया कि अलंकरण समारोह के मौके पर रवीन्द्र भवन परिसर में जनजातीय जीवन पर आधारित विभिन्न प्रदर्शनियों, लोकनृत्यों एवं विविध कार्यक्रमों का आयोजिन भी किया जायेगा। जिसमें मध्यप्रदेश के सुदूर अंचलों से जनजातीय कलाकार सहभागिता करेंगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें