दुकानदार और सेल्स कर्मचारी की मिलीभगत से शासन को लग रहा राजस्व का चूना
भोपाल, 24 दिसंबर 2010। राजस्व विभाग को चूना लगाने के लिये दवा दुकानदारों और सेल्स कर्मचारियों की मिलीभगत हो रही है। ये लोग मिलकर करोड़ों रुपए के सौदे ऐसी दवाओं के कर लेते हैं जो बिकने के लिए होती ही नहीं है। मुत में मिलने वाली दवाओं को भी बेचने के लिए राजधानी में कई बड़ी दवा एजेंसिया लगी हैं। और इनके कर्मचारी बाकायदा हर महीने ही नो सेल्स दवाइयों का कोटा जारी करते हैं। दुकानों से इन दवाओं को मुत लेने के बजाय बेचने के लिये निर्धारित कीमत वसूली जा रही है। इससे वाणिज्य एवं आयकर विभाग को मिलने वाला कर भी मारा जा रहा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार कई दवाखानों में नो सेल्स की दवाइयां बेची जा रही है, जबकि शासन के नियमों और कंपनी के लिए अधिकृत प्रावधानों में कहीं भी नो सेल्स दवा कीमत लेकर बेचने का प्रावधान नहीं है। खाद्य एवं औषधि प्रसंस्करण विभाग तो इससे अनजान बना ही है, आम उपभोक्ता भी अपने अधिकारों को लेकर आगे नहीं आ पा रहे हैं। इसका फायदा उन लोगों को मिल रहा है जिनका राजस्व आम बुनियादी जरूरतों को पूरा करता है, लेकिन चपत के इस खेल में मोटा राजस्व बचाया जा रहा है। कई दवा दुकानों पर टेबलेट से लेकर महंगे सीरप नो सेल्स के टेबल पर बेेचे जा रहे हैं। पड़ताल के दौरान हमीदिया रोड, हबीबगंज नाका, बस स्टैण्ड मार्ग और हास्पिटल परिसर सहित कुछ अन्य मार्गों पर नो सेल्स की दवाइयां धड़ल्ले से बेचने के तथ्य सामने आए हैं। कई एजेंसीधारकों ने माना कि प्रतिद्वद्विता के चलते दवा व्यापारियों को बांधे रखने के लिये नो सेल्स डिलीवरी बढ़ रही है। इनका उपयोग अतिरिक्त कमाई के रूप में हो रहा है और शासन को फटका लगाया जा रहा है।
नो सेल्स के कारोबार के लिए दवा दुकानों पर आम चलन से बाहर की दवाइयों को चुना गया है। दर्द निवारक, बुखार, ब्लडप्रेशर, डी-हाईड्रेशन, सूजन सहित अन्य आम जरूरी दवाओं की बजाय महंगी और कम खपत वाली दवाइयां नो सेल्स लेबल की बेची जा रही है। इसके पीछे कंपनी के सेल्स के बगैर प्रभावित किए अपनी काई बढ़ाना सबसे बड़ा कारण है। जरूरी दवाइयों का सेल्स बेहतर बताकर मुनाफा वाले दवाइयों की नो सेल्स डिलीवरी ली जा रही है।
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