शनिवार, 25 दिसंबर 2010

इस्लाम में एक से अधिक शादी करने के मामले में विधि आयोग की ताजा रिपोर्ट की उलेमा ने कठोर आलोचना की है और इसे इस्लामी शिक्षा और शरीयत के विरुद्ध करार दि


अब्दुल वाहिद आजाद (दिल्ली से)

इस्लाम में एक से अधिक शादी करने के मामले में विधि आयोग की ताजा रिपोर्ट की उलेमा ने कठोर आलोचना की है और इसे इस्लामी शिक्षा और शरीयत के विरुद्ध करार दिया है।


BBCगौरतलब है कि विधि आयोग ने विधि मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दूसरी शादी करना 'इस्लाम के सच्चे कानून की आत्मा के खिलाफ है। साथ ही जो ये आम समझ है कि भारत में मुसलमानों का कानून उन्हें चार पत्नियाँ रखने की इजाजत देता है, गलत है।'

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि कई मुस्लिम देशों जैसे तुर्की और ट्यूनीशिया, जहाँ बहुपत्नीत्व पर प्रतिबंध है, वहीं मिस्र, सीरिया, जॉर्डन, इराक, यमन, मोरोक्को, पाकिस्तान और बांग्लादेश में दूसरी शादी प्रशासन या अदालत के अधीन है।

विधि आयोग की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारत में इस्लामी शिक्षा के सबसे बड़े केंद्र दारुल उलूम देवबंद के उपकुलपति मौलाना खालिद मद्रासी का कहना है कि आयोग की रिपोर्ट गलत और मजहब में दखल के बराबर है।

उनका कहना है, 'हम केवल भारतीय संविधान के अधीन हैं और संविधान अपने-अपने धर्म को मानने की आजादी देता है। एक से अधिक शादी करना मुसलमानों का धार्मिक अधिकार है और हम आयोग की रिपोर्ट की निंदा करते हैं।'

'विधि आयोग की राय सही'
हालाँकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की महिला सदस्या हसीना हाशीया विधि आयोग की राय को सही मानती हैं। उनका कहना है कि आयोग की बात इस्लामी शिक्षा के अनुरुप है। वे कहती हैं, 'इस्लाम में विशेष स्थितियों में ही एक से अधिक शादी करने की इजाजत दी गई है जैसे विधवा की संख्या काफी बढ़ गई हो और इससे समाज में बुराई फैलने का डर हो।'

हाशीया कहती हैं कि भारत में दूसरी शादी करने के मामले प्रशासन के अधीन होने चाहिए। जैसे कई मुस्लिम देशों में हैं, लेकिन पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, क्योंकि वो भी इस्लमी शिक्षा के विरुद्ध है।

मामले की गहराई पर बात करते हुए जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इस्लामिक स्टडीज विभाग के प्रोफेसर जुनैद हारिस कहते हैं कि इस्लाम में एक से अधिक शादी की इजाजत जरूर दी गई है लेकिन न इसे आवश्यक बनाया गया है और न ही इसे बढ़ावा देने की बात कही गई है, बल्कि इसके लिए कुछ शर्तें भी रखी गई हैं।

उनका कहना है, 'इस्लाम में एक से अधिक शादी की इजाजत उसे दी गई है जो अपने बीवियों के बीच इंसाफ और उनके अधिकार को पूरा कर सकता है लेकिन इस्लाम इस बात की इजाजत नहीं देता कि जो चाहे इस सुविधा का गलत इस्तेमाल करे।'

जुनैद हारिस स्वीकार करते हैं कि भारत में एक से अधिक शादी करने वाले अधिकतर लोग इस्लाम के सच्चे कानून की आत्मा का पालन नहीं करते हैं और कुछ तो अपनी पहली पत्नी और उससे पैदा होने वाले बच्चों को भी छोड़ देते हैं जो इस्लाम के विरुद्ध है।

'शरीयत की गलत व्याख्या'
लेकिन कुछ उलेमा न सिर्फ विधि आयोग की रिपोर्ट से नाराज है बल्कि इसे शरीयत की गलत व्याख्या भी करार दे रहे हैं।

धार्मिक संगठन जमीअत उलेमा हिंद के प्रवक्ता मौलाना हमीद नोमानी ने विधि आयोग की रिपोर्ट पर सख्त आपत्ति जताते हुए कहा कि 'आयोग को इस बात का अधिकार नहीं हैं कि वो शरीयत की गलत व्याख्या करे।'

मैंने यही सवाल समाजशास्त्री इम्तियाज अहमद से पूछा कि क्या ये ‘शरीयत की गलत व्याख्या है’ तो उनका कहना था, 'शरीयत की व्याख्याएँ बदलती रहती हैं और एक से अधिक शादी करने की खुली छूट न कुरान में है न हदीस में है।'

तो ऐसी क्या वजह है कि उलेमा बिरादरी आयोग की रिपोर्ट को मजहब में दखल मान रहे हैं, तो इम्तियाज कहते हैं, 'उलेमा को ऐसे किसी मामले में फेरबदल शरीयत में छेड़छाड़ लगता है क्योंकि वो इसे पहचान का मामला समझ लेते हैं, जबकि पहचान चार शादी करने से नहीं बल्कि अच्छे काम करने से होती है।'

मुसलमानों के एक से अधिक शादी का मामला विवादित रहा है लेकिन भारत सरकार के एक अध्ययन के अनुसार सच्चाई यह है कि इन सबके बावजूद भारतीय मुसलमान दूसरी शादी करने में देश की दूसरी धार्मिक बिरादरियों से पीछे हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें