शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

आपाधापी में मानवता भूलता जा रहा है मनुष्य


आपाधापी में मानवता भूलता जा रहा है मनुष्य
जागरूक होना होगा तभी जग का कल्याण होगा
भोपाल, 19 नवंबर 2010। एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में आज हर मनुष्य मानवता को छोड़कर पशुता का व्यवहार कर रहा है। प्रत्येक इंसान में इंसानियत का अभाव देखा जा रहा है। कोई भी व्यक्ति यह नहीं सोचता है कि जो कर्म हम कर रहे हैं उसे हमें इसी दुनिया में जीते जी ही भुगतना है, तभी अपना शरीर छोड़ेंगे। उक्त विचार जन संवेदना कल्याण समिति द्वारा आयोजित पत्रकारवार्ता में आचार्य श्री रागानुगानन्द अवधूत जी द्वारा व्यक्त किये गए।
आचार्य श्री ने कहा कि भगवान ने हर इंसान को अच्छे कर्म करने के लिए इस धरती पर मनुष्य का शरीर देकर भेजा है। उसे सोचने के लिए बुद्धि दी है ताकि वह उसका उपयोग कर अच्छे कार्य कर सके, लेकिन आज का इंसान पश्चिमी वातावरण के रंग में लिप्त होकर भोग-विलासितापूर्ण जीने का आदी हो गया है। उसे न तो अपनी चिंता है और न ही अपने परिवार की। बस एक ही लक्ष्य लेकर जिये जा रहा है कि हमें सबसे आगे बढ़ना है। चाहे उसके लिए हमें अपनों का ही गला क्यों न काटने पड़े। इस आपाधापी भरे जीवन में मनुष्य यह भी भूल गया है कि जो आत्मा रूपी शरीर उसे कुछ दिनों के लिये मिला है वह एक दिन तो उसे छोड़क़र चला ही जाएगा, फिर क्यों न उसका सही कार्यों में उपयोग किया जाए। क्योंकि आत्मा तो जिस क्षण शरीर छोड़ती है उसी क्षण उसे दूसरे शरीर में प्रवेश करना होता है।
मृत्यु के पश्चात क्या होता है संदर्भ में उन्होंने बताया कि यह आत्मा शरीर छोड़ने के पश्चात उपयुक्त शरीर की तलाश में रहती है। हमारा मन अच्छे शरीर की खोज लगातार भटकता रहता है। उन्होंने बताया कि यदि आत्मकल्याण करना है तो मनुष्य को अच्छे कर्म करना होगा। इंसान को जागरूक होना होगा। तभी वह संसार को जगा सकेगा। अच्छे और बुरे कार्यों मेें भेद करते हुए आचार्यश्री ने बताया कि अच्छे और बुरे कर्म हमारे पूर्व जन्मों का ही फल है। यदि हमने पिछले जन्म में बुरे कर्म किये होंगे तो इस जन्म में हमें वह भुगतना ही होगा। इससे बचने का यही एक तरीका है कि हम परमार्थ के कार्य करते रहे। दूसरों की मदद में हमेशा तत्पर रहें। इससे दूसरों की मदद तो होगी ही, आत्मकल्याण भी होगा। हमारे अंदर इंसानियत पैदा होगी। उन्होंने बताया कि हर व्यक्ति यदि धर्म के मार्ग पर चलना शुरू कर दे तो यह दुनिया वैसी ही बदल जाएगी। चारों ओर सत्य की जय-जय होने लगेगी और अधर्म का नाश हो जाएगा। किन्तु इसके लिए हमें हमारे भीतर के मनुष्य को जगाना होगा। हमारी आत्मा को जगाना होगा। चूंकि हर मनुष्य के अंदर अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के इंसान का वास होता है। यदि हम बुरे ही कर्म करते रहे फिर भी एक समय ऐसा आता है जब हमारी आत्मा हमें झिंझोड़ती है कि बस अब और नहीं। इसके लिए हम ध्यान का सहारा ले सकते हैं। हमारे मन को एकाग्र करने के लिये मेडिटेशन ही सबसे उपयुक्त साधन है। यदि हमारा मन अपने काबू में हो गया तो हम संसार को अच्छे मार्ग पर चला सकते हैं।
साधु का लिबास ओढ़कर दुनिया को धूर्त बनाने के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि आज हर व्यक्ति दो तरह की जिंदगी जीता है। कुछ साधु अच्छे भी होते हैं और कुछ बुरे भी। हमें अच्छे लोगों को पहचानना होगा। उनकी अच्छाइयों को दूसरों को बताना होगा। यदि कोई साधु बुरा कार्य कर रहा है तो उसमें हम भी दोषी कम नहीं हैं। क्योंकि हम ही हैं जो किसी भी धार्मिक स्थान पर पहले दर्शन करने के चक्कर में रिश्वत के तौर पर चढ़ावा चढ़ाते हैं। हम यह भी नहीं सोचते हैं कि हम सक्षम हैं इसलिए चढ़ावा चढ़ाकर हम पहले दर्शन कर लेंगे, लेकिन जो लोग घंटों से लाइन में लगे हैं उनका क्या होता होगा। चूंकि वह भी हम जैसे ही इंसान हैं। इसलिए यदि कोई बुरा कार्य कर रहा है तो उसका दोषी वह अकेला नहीं है, हमारे ही सहारे वह फल-फूल रहा है। आतंकवादियों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि आतंकी कोई भी हो यदि उसे सही दिशा मिल जाए, सही जानकारी मिल जाए तो वह भी अच्छा आदमी बन सकता है। उन्होंने कहा कि यदि हमारे द्वारा किसी को भी चोट पहुंचती है तो उसका नुकसान हमें ही होगा। किन्तु यदि हम परोपकार कर रहे हैं और अनजाने ही किसी को हमारे द्वारा किये गए कार्य से दुख होता है, लेकिन हमारी भावना ऐसी नहीं थी कि हम दूसरों को कष्ट पहुंचाएं ऐसी स्थिति में हम उस दुख के भागी नहीं बनते हैं। क्योंकि हम निर्मल भावना से कार्य कर रहे थे। आचार्यजी ने बताया धर्म के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति कभी पराजित नहीं होता। दूसरों का नुकसान करके हम कभी भी उन्नति नहीं कर सकते। एक क्षण तो हमें लगता है कि हम सबसे आगे पहुंच गये हैं लेकिन भगवान के पास हर इंसान का लेखा-जोखा होता है। वह हर व्यक्ति के कर्मों को देखता है। इसलिए हमें परमार्थ करते हुए आगे बढऩा चाहिए, ताकि अपना तो कल्याण हो ही, जग भी सुन्दर बने जाए। जन संवेदना संस्था के कायों का अवलोकन करने के बाद आचार्य जी ने कहा कि यह संस्था मानव हित के कार्य कर रही है। आज जहां इंसान अपने ही लोगों को भूल जाता है वहीं यह संस्था अनजान व्यक्तियों के लिए कार्य रही है। उन्होंने लोगों से जन संवेदना से जु़ड़ने की अपील भी की है।

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