मंगलवार, 3 अगस्त 2010

हुकूमत ने अल्लाह के हवाले किए मुस्लिम इदारे

Aug 03,
भोपाल। प्रदेश के लाखों मुसलमानों की यदि चुनावी पूछ परख छोड़ दें तो आम तौर पर उनकी फरियाद सुनने वाला कोई नहीं। सरकार ने कागजों पर तो बड़ी योजनाएं बनाई हैं, लेकिन हकीकत यह है कि अल्पसंख्यक आयोग पिछले दो साल से लावारिश है। आधे से अधिक जिलों में अल्पसंख्यक कल्याण समिति नहीं हैं। यहां तक कि राजधानी में मसाजिद कमेटी में नई नियुक्तियां नहीं की गई और मुतवल्ली कमेटी भी दो साल से नदारद है। प्रदेश के अल्पसंख्यकों को लेकर सरकार की लापरवाही लगातार उजागर होती जा रही है। न तो शासन इनकी तरफ ध्यान दे रहा है और न अल्पसंख्यकों की मांग पूरी की जा रही है। भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा भी इतना दमदार नहीं कि सरकार से अपनी बात मनवा सके।

अल्पसंख्यक आयोग

विधानसभा चुनाव से पूर्व आयोग के अध्यक्ष अनवर मोहम्मद खान का कार्यकाल अक्टूबर 2008 में पूरा हो गया था। इसके बाद से ही यहां अध्यक्ष का पद खाली है। लगभग तीन माह बाद सदस्य पीएस आनंद की विदाई हो गई। इसके बाद नंबर आया सदस्य सेम पावरी का तो उनकी भी निर्धारित समय पर विदाई हो गई। बाद में ईसाई समुदाय के प्रतिनिधि आनंद बर्नाड का कार्यकाल भी समाप्त हो गया। अब इस संवैधानिक संस्था में एक मात्र सदस्य सरदार कुलवंत सिंह सचदेवा हैं। जिनके भरोसे पूरे प्रदेश के अल्पसंख्यकों की कमान है। दुखद बात यह है कि इस संवैधानिक संस्था में अध्यक्ष के बिना ही दो साल का काम पूरा किया गया।

मसाजिद कमेटी

कभी मसाजिद कमेटी का कार्य अखबारों की सुर्खियां हुआ करता था। अब हालत यह है कि मसाजिद कमेटी के दफ्तर में सन्नाटा है। अध्यक्ष और सचिव का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। नई कमेटी की घोषणा अभी तक नहीं हुई। रियासत भोपाल के तीन जिलों में मस्जिदों की देखरेख और इमाम मुअज्जिन को वेतन देने वाली इस संस्था के लिए कोई पहल नहीं की जा रही।

मदरसा बोर्ड

मदरसा बोर्ड के हालात भी ठीक नहीं हैं। अध्यक्ष गनी अंसारी वयोवृद्ध हैं और कर्मचारियों की आपसी खींचतान पर उनकी पकड़ भी नहीं है। स्थिति यह है कि इस मुस्लिम इदारे में परीक्षा भी समय पर नहीं हो पाती। सूत्रों की माने तो अध्यक्ष की मुश्किलें भी इस समय बढ़ गई हैं और उनका कार्यकाल भी समाप्त होने के कगार पर है।

वक्फ बोर्ड

सबसे बड़े मुस्लिम इदारे वक्फ बोर्ड की हालत भी किसी से छिपी नहीं है। गनीमत है कि इस संस्था में अध्यक्ष मौजूद हैं। यहां की समस्या मुख्य कार्यपालन अधिकारी का पद है। पिछले तीन माह में अब इस पद पर सरकार ने तीसरी नियुक्ति की है। आम मुसलमानों का आक्रोश इस बात को लेकर है कि 55 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति वाला वक्फ बोर्ड पचास लाख रुपए सालाना भी नहीं कमा पा रहा। यहां संपत्ति के खुर्दबुर्द होने के मामले कई बार

चर्चित हुए।

मुतवल्ली कमेटी

राजधानी में बिखरी अरबों रुपए की वक्फ संपत्ति की रक्षा की जिम्मेदारी मुतवल्ली कमेटी की होती है। लेकिन यह कमेटी पिछले दो साल से कागजों से बाहर नहीं आ पाई। यहां पूर्व अध्यक्ष एडवोकेट सुलतान अब्दुल अजीज को कोर्ट के आदेश पर वक्फ बोर्ड ने बेदखल किया था जिसकी वजह से पूरी की पूरी कमेटी भंग हो गई। अब यहां का कामकाज प्रशासक के हवाले हैं। जिसको लेकर मुस्लिम समुदाय में आक्रोश है।

उर्दू अकादमी

मुस्लिम समुदाय की एक और महत्वपूर्ण संस्था उर्दू अकादमी में सब कुछ ठीक है। लेकिन अध्यक्ष के रूप में यहां कमान संभालने वाले दुनिया के ख्याति प्राप्त शायर डॉ. बशीर बद्र अस्वस्थ्य हैं। सरकार के पास ऐसा कोई नाम नहीं जो डॉ. बद्र की

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