शनिवार, 10 नवंबर 2012

बरेली गोलीकांड में छ: ग अधिकारियों को आयोग का नोटिस


बरेली गोलीकांड में छ: ग अधिकारियों को आयोग का नोटिस

भोपाल 10 नवंबर 2012। मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने रायसेन के कलेक्टर मोहनलाल मीणा, पुलिस अधीक्षक आई0पी0 कुलश्रेष्ठ और बरेली के एसडीएम अनिल तिवारी, एसडीओपी एस0आर0 सरयाम, तहसीलदार एस0 एल0 सोलंकी और थाना प्रभारी एस0 पी0 बोहित को आगामी 21 दिसम्बर को आयोग की दो सदस्यीय खण्डपीठ के समक्ष उपस्थित होने के निर्देश दिये हैं।
बरेली में विगत सात मई को किसानों के प्रदर्शन के दौरान गोली-चालन की घटना में इन सभी अधिकारियों को आयोग ने प्रथम दृष्टया मानव अधिकारों के हनन का दोषी पाया है। यदि ये अधिकारी आयोग के समक्ष उपस्थित होकर अपना स्पष्टीकरण पेश नहीं करते हैं तो इनके विरुद्ध एक पक्षीय कार्यवाही की जायेगी।
कलेक्टर, एसडीएम और तहसीलदार को कमिश्नर के मार्फ त और पुलिस अधीक्षक, एसडीओपी और थाना प्रभारी को संबंधित डीआईजी के मार्फत सूचना पत्र भेजे गये हैं। कमिश्नर और डीआईजी को लिखा गया है कि इन अधिकारियों को प्रत्येक स्थिति में सुनवाई तिथि के पूर्व नोटिस की तामीली कराकर प्रतिवेदन आयोग को भेजें।
जिन अधिकारियों को नोटिस भेजा गया है वे सुनवाई के पूर्व आयोग में प्रकरण का अवलोकन कर सकते हैं। यदि उन्हें किसी प्रपत्र की आवश्यकता है तो वे उसकी प्रतिलिपि भी प्राप्त कर सकते हैं। सभी अधिकारियों को नोटिस के साथ आयोग के अनुसंधान दल द्वारा की गई जांच प्रतिवेदन की प्रतिलिपि भी भेजी गई है।
आयोग ने बरेली में किसानों और पुलिस कर्मियों के बीच हुए विवाद, मारपीट, तोडफ़ोड़ और किसान हरीसिंह की मौत से संबंधित सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों को संज्ञान में लिया था। घटना की गम्भीरता को दृष्टिगत रखते हुए मुख्य सचिव, डीजीपी, कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक से घटना के संबंध में प्रतिवेदन बुलाया गया था।
आयोग ने अपने अनुसंधान दल के मार्फत भी स्वतंत्र जांच करवाई। घटना का कारण क्या था, किसकी त्रुटि से आन्दोलन ने उग्र रूप धारण किया और आगजनी, मारपीट और किसान की मौत जैसी घटनायें हुई, आदि बिंदु जांच में शामिल थे। घटना में पुलिस का क्या रोल था, इस घटना के पूर्व किसानों का आन्दोलन कितने दिनों से और किस रूप में चल रहा था तथा पुलिस घटना को रोकने में सफल क्यों नहीं हो पायी यह भी जाँच में शामिल था।
आयोग ने जांच के बाद पाया कि पूरी घटना में जिला और पुलिस प्रशासन ने लापरवाहीपूर्वक कार्य किया। स्थिति को गम्भीरता से नहीं लिया। गोली-चालन के पूर्व चेतावनी देने आदि की आवश्यक कार्यवाही भी नहीं की गयी। बिना पर्याप्त आधारों के पुलिस प्रशासन ने अपनी ओर से लाठी-चार्ज शुरू कर दिया। उसके बाद गोली चालन से हरीसिंह की मौत हो गई। प्रकरण में यह भी स्पष्ट हुआ कि गेहूं खरीदी के लिए बारदानों का इंतजाम कराने में शासन और प्रशासन असफल रहा।

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