रविवार, 25 नवंबर 2012

भारत की ओर देख रही है विश्व की जनजातियां


  -विश्व की जनजातियां और हम विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बोले वक्ता
भोपाल, 25 नवंबर 12। विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत जातियां भारत की ओर देख रही हैं। इनको आशा है कि भारतीय समाज और सरकार स्वदेश वापसी की इच्छा सुनिश्चित करेगा। यह विचार हैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ विदेश विभाग के सहसंयोजक रवि कुमार अय्यर के। वह छात्र शक्ति भवन में आयोजित कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता के रूप में अपनी बात रख रहे थे। वनवासी कल्याण परिषद मध्यप्रांत द्वारा आयोजित इस संगोष्ठी की अध्यक्षता बैतूल के वरिष्ठ समाज सेवक दुर्गादास उईके ने की। जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के प्रमुख अभियंता जीएस डामोर ने भी सभा को संबोधित किया। इस अवसर पर वनवासी कल्याण परिषद के क्षेत्रीय संगठन मंत्री गिरीश कुबेर, प्रांतीय महामंत्री योगीराज परते, प्रांतीय सह कार्यालय प्रमुख कालू सिंह मुजालदा, विभाग संगठन मंत्री प्रवीण पराशर, महानगर अध्यक्ष बसंत जोशी, सचिव कृतेश गुप्ता सहितकार्यक्रम संयोजक श्रीमती मंजू सोनी मुख्य रूप से मौजूद रहीं।
       विश्व भ्रमण कर महसूस की गई जनजातीय समाज की विशेषताओं तथा उनके संषर्ष के संबंध पर अपनी बात रखते हुए श्री अय्यर ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि मध्य पूर्व से आए आक्रांताओं ने देश के पश्चिमी क्षेत्र राजस्थान और सिंध प्रदेश की सीमा के किनारे रह रहे आदिवासियों को न केवल गुलाम बनाया बल्कि बगदाद में ले जारकर बेंचा भी। चूंकि यह इजप्त से होकर 13वीं, 14वीं और 15वीं सदी के दौरान यूरोपियन देशों में गए इसलिए
इन्हें जिप्सी संबोधन भी किया गया। यह लोग रोमानियां, हंगरी, इटली और स्पेन आदि देशों में पाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि पिछले 600 वर्षों में न केवल इन्हें यातनाएं दी गई बल्कि इनको क्रूरतम तरीके से मारा भी गया है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 5 लाख से अधिक आदिवासियों को गैस चेंबर में बंद कर मारे जाने के प्रमाण भी मिलते हैं। श्री अय्यर ने इस दौरान बताया कि इन आदिवासियों में कई महान हस्तियां भी हुई हैं। जिन्हें कला और विज्ञान में अतुलनीय योगदान के लिए आज भी याद किया जाता है। इनमें प्रसिद्ध गायक एल्विस पे्रंसली और चार्ली चैप्लिन के नाम प्रमुख है।
   वहीं विशिष्ट अतिथि के रूप में अपनी बात रखते हुए जीएस डामोर ने कहा कि  जनजाति समाज का पर्यटन धर्म आधारित है। इस समाज की संस्कृति और सभ्यता की समझ विकसित करने का सुझाव देते हुए उन्होंने कहा कि इसके लिए आवश्यक है कि जनजातीय परिवारों में जाकर न केवल रूका जाए बल्कि स्वयं के घर में बुलाना भी चाहिए। धर्म के प्रति आस्था व प्रतिबद्धता पर चर्चा करते हुए श्री डामोर ने बताया कि राजस्थान, गुजरात की सीमा में रह रहा  आदिवासी समाज भील इस युग में भी पारस्परिक अभिवादन के लिए राम-राम का ही प्रयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि विश्व की जनजातियों की अपनी संस्कृति है, अपनी पद्धतियां है लेकिन वह वह विश्व के अन्य सुसंस्कृति समझे जाने वाले समाज से अलग नहीं है। सही मायनों में वह प्रकृति पूजक है। संगोष्ठी का शुभारंभ दीप प्रज्वलित कर किया गया। इस दौरान मॉ भारती व सरस्वती के चित्र पर उपस्थित विद्वानों ने माल्यार्पण किया।

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