गुरुवार, 28 जून 2012

सेक्‍स को उद्योग का दर्जा


ईश्‍वर ने इस सृष्टि की रचना के लिये सभी प्राणियों में नर तथा मादा दो लिंग बनाये ताकि  इनके समागम से संतानोत्‍पत्ति हो और उन प्राणियों की संख्‍या में वृद्धि हो. कहते हैं संसार में 18 हजार प्राणी हैं जिनमें मनुष्‍य सर्वश्रेष्‍ठ माना जाता है क्‍योंकि उसे एक सशक्‍त दिमाग दिया गया है जिससे वह सोच सकता हैं और उस सोच के माध्‍यम से नये नये आविष्‍कार कर सकता हैं, कौन सी बात या वस्‍तु उसके लिये हितकारी है और कौन सी हानिकारक, इसका निर्णय कर सकता है. इन प्राणियों में केवल मनुष्‍य ही एक ऐसा प्राणी है जो स्‍वयं अपनी जीविका की व्‍यवस्‍था करता है, चाहे नौकरी कर के या कोई व्‍यापार कर के. प्रकृति के नियमानुसार संसार में जनसंख्‍या में वृद्धि का एकमात्र साधन सेक्‍स है. लोगों में सेक्‍स के प्रति रुचि बनी रहे इसलिये कुदरत ने इसमें कुछ क्षणों का आनंद रख दिया तथा सेक्‍स हेतु प्रेरित होने के लिये नर तथा मादा के बीच परस्‍पर आकर्षण की व्‍यवस्‍था कर दी.  पशु पक्षियों में सशक्‍त मष्तिष्‍क नहीं होता इसलिये वे प्रकृति के नियमों के अनुरूप सेक्‍स द्वारा अपनी संख्‍या में वृद्धि करते रहते हैं. पशु पक्षियों में अप्राकृतिक यौन संबंध नहीं पाये जाते.  ईश्‍वर ने मनुष्‍य को सशक्‍त म‍ष्तिष्‍क दिया ताकि वह रचनात्‍मक कार्य कर सके किंतु मनुष्‍य एक बड़े वर्ग ने कई मामलों में इसका दुरुपयोग किया, विशेषत: सेक्‍स के मामले में.  प्रकृति ने सेक्‍स का सिस्‍टम केवल जनसंख्‍या वृद्धि के लिये लागू किया किंतु मनुष्‍य ने सेक्‍स में अनुभूत होने वाले आनंद के कुछ क्षणों को सेक्‍स का प्रधान उद्देश्‍य बना लिया.  संतानोत्‍पत्ति रोकने के नये नये उपाय ढूंढ लिये तथा काम-सुख प्राप्‍त करने के लिये नये नये प्रयोग प्रारंभ कर दिये.  भारत में तो अधिकांश लोग धर्म परायण हैं, पाश्‍चात्‍य देशों के लोगों ने सेक्‍स की इतनी विकृति विधियां निकाल लीं कि प्रकृति के सारे कानून भंग हो गये. प्राकृतिक सेक्‍स की जगह ओरल सेक्‍स (मुख मैथुन), रेक्‍टल सेक्‍स (गुदा मैथुन), हस्‍त मैथुन, समलैंगिक संभोग और न जाने कितनी गंदगियों का आविष्‍कार कर लिया. पुरुषों के लिये स्‍त्री विहीन सेक्‍स हेतु रबर की गुडि़यां तथा स्त्रियों के लिये पुरुषविहीन सेक्‍स हेतु वायब्रेटर जैसे कृत्रिम साधन बना लिये.  अच्‍छी बातों का प्रचार प्रसार कठिन कार्य है किंतु बुरी बातें जंगल में आग की तरह फैलती हैं. पहले कोई गुंडा भी किसी से बलात्‍कार करता था तो खुली जगह में नहीं करता था, कुछ न कुछ आड़ या पर्दा कर लेता था किंतु अब पढ़े लिखे सभ्‍य समाज में ग्रुप सेक्‍स (सामूहिक रतिक्रिया), वाइफ स्‍वैपिंग (पत्नियों की अदला बदली), खुले मैदान में समूह बना कर फ्री सेक्‍स करने जैसी बुराइयां तेजी से फैल रही हैं.

     पहले कुछ महिलायें केवल गरीबी के कारण देह व्‍यापार अपनाने को विवश होती थीं किंतु उन्‍हें समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता था. आज बहुत से संभ्रांत परिवारों की महिलाओं ने इसे बिजनेस प्रमोशन का हथियार बना लिया है, बहुत से मध्‍यम वर्गीय परिवारों की म‍हिलाओं ने इसे पार्ट टाइम जाब की तरह अपना लिया है. एक सर्वे के अनुसार मुंबई, कोलकाता, दिल्‍ली, चेन्‍नई, अहमदाबाद, हैदराबाद, पूना जैसे महानगरों में विवाहित महिलायें घर से आफिस टाइम से एक घंटा पहले निकलती हैं और शाम को दो-तीन घंटे बाद आती हैं. इस एक्‍स्‍ट्रा टाइम में वे पार्ट टाइम सेक्‍स वर्कर का कार्य करती हैं. दिलचस्‍प बात यह है कि यह बातें परिवार में सभी को मालूम रहती है, महिला की सास तथा ननदें काम में हांथ बंटा कर उसे शीघ्र तैयार होने में मदद करती हैं, पति तो पत्‍नी को ग्राहक के पास छोड़ने तथा समय पर वापस लाने का काम भी मुस्‍तैदी से करता है.  भौतिकता के इस युग ने धार्मिक तथा सांस्‍कृतिक मान्‍यताओं एवं नैतिक मूल्‍यों को कुचल कर रख दिया है. आज कई घरों में पति पत्‍नी के बीच समर्पण तथा वफादारी का स्‍थान मौज मस्‍ती ने ले लिया है. कुछ अमेरिकन कंपनीज अपने प्रोडक्‍ट बेचने के लिये चरित्रहीनता को बढ़ावा देने वाले अश्‍लील विज्ञापन दिखा रही है.  भारत में एक कहावत थी कि यहां नारी की पूजा की जाती है. वर्तमान में नारी को केवल एक कंज्‍यूमेबिल आइटम के रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है. सिगरेट/शराब का विज्ञापन हो या मर्दों के परिधानों का या माचिस की डिब्‍बी का, विज्ञापन में दिखेगी औरती की ही तस्‍वीर, वह भी कामुक मुद्रा में.  पुरुष प्रधान समाज में पुरुष ने स्‍त्री का दैहिक शोषण अपना जन्‍मसिद्ध अधिकार मान लिया है.  पाश्‍चात्‍य सभ्‍यता के अंधानुकरण तथा भौतिक सुविधाओं के चक्‍कर में स्त्रियों का एक बड़ा वर्ग भी इतना पथ भ्रष्‍ट हो चुका है कि वह नाजायज यौन संबंधों को दैहिक शोषण नहीं बल्कि वर्तमान युग की आवश्‍यकता मानता है. आज पर-पुरुष या पर-नारी के साथ सेक्‍स संबंध स्‍थापित करना अपराध नहीं बल्कि फैशन बन चुका है. हद तो यह है कि भारतीय दंड विधान में भी अवैध यौन संबंधों पर दंड की व्‍यवस्‍था नहीं है.  यदि कोई व्‍यक्ति पत्‍नी के रहते हुये दूसरी स्‍त्री से विवाह कर ले तो वह अपराध की श्रेणी में आता है तथा सजा हो जाती है किंतु यदि वही व्‍यक्ति दूसरा विवाह न कर उसी पर-नारी या कई पर-नारियों के साथ सेक्‍स का आनंद प्राप्‍त करता रहे तो उस पर अपराध दर्ज नहीं होगा.

     कुछ विदेशी कंपनियां इलेक्‍ट्रानिक मीडिया की सहायता से अप्राकृतिक सेक्‍स तथा अवैध यौन संबंधों को बढ़ावा दे कर गर्भ निरोधक सामग्रियों तथा यौन जन्‍य गुप्‍त रोगों की दवाओं का भारत में निर्यात कर अरबों रुपये प्रति वर्ष का मुनाफा काट रही हैं. अवैध यौन संबंधों को अघोषित मान्‍यता मिल जाने के कारण अब हर तरफ सेक्‍स ही सेक्‍स दिखाई दे रहा है. पहले मां-बाप के बीच चल रहे सेक्‍स संबंधों का पता संतानों को नहीं चल पाता था,  अब इंटरनेट खोलिये, हर प्रतिष्ठित समाचार वेबसाइट पर अवैध यौन संबंधों के समाचार भरे पड़े मिलेंगे. सड़क पर खड़ी कार में सेक्‍स के फोटो, थ्री-व्‍हीलर में सड़क के किनारे सेक्‍स के सचित्र समाचार, सब देखिये. होटलों में, पार्कों में, बसों में, लोकल ट्रेनों में, आफिसों में सभी जगह लोग अवैध यौन संबंधों का आनंद उठाते मिल जायेंगे, वह भी दिन दहाड़े.  पहले टीचर्स, डाक्‍टर्स तथा पुलिस को महिलाओं का रक्षक माना जाता था, अब इन्‍हीं पर महिलाओं का अपनी हवस का शिकार बनाने के आरोप लग रहे हैं. कुछ माह पूर्व एक सरकारी मेडिकल कालेज की एक छात्रा ने शिकायत की कि उसे डाक्‍टरी की परीक्षा उत्‍तीर्ण करने के लिये उससे सेक्‍स की मांग की जा रही है. दुर्भाग्‍यवश, सेक्‍स  को सफलता की कुंजी मान कर चलने वाले चरित्रहीनों का इतना प्रचंड बहुमत हो चुका है कि उनके सामने मुट्ठी भर चरित्रवान अल्‍पसंख्‍यक होने का सम्‍मान भी खो चुके हैं सो उस छात्रा का समर्थन करने के बजाय बहुत से छात्र छात्राओं ने उस पीडि़ता के विरुद्ध मुहिम छेड़ दी.  किंतु कुदरत का कानून अटल तथा सर्वोपरि है, अंधेर गर्दी की छूट नहीं देता. जांच में पता चला कि छात्रा की शिकायत सही थी. सेक्‍स फार मार्क्‍स का यह खेल केवल टीचिंग स्‍टाफ तक सीमित नहीं था बल्कि कुछ दलाल बदनाम करने की धमकी दे कर छात्राओं को बड़े नेताओं तथा व्‍यापारियों के पास भी दैहिक शोषण हेतु जाने के लिये विवश करते थे, यानि दैहिक शोषण का एक अंतहीन सिलसिला जो आत्‍महत्‍या या हत्‍या पर ही थम सकता था. बहरहाल, अभी यह मामला संबंधित प्रदेश के उच्‍च न्‍यायालय में है.
     सरकारी कार्यालयों में जो अधिकारी तथा कर्मचारी महत्‍वपूर्ण पदों पर आसीन हैं तथा उनके राजनीतिक आकाओं से काम निकलवाने के लिये बड़े व्‍यापारिक प्रतिष्‍ठानों ने कुछ महिलाओं को मोटी सैलरी तथा कमीशन पर नियुक्‍त कर रखा है. इनमें अधिकतर वे महिलायें होती हैं जो महत्‍वाकांक्षाओं के सागर में इतनी अधिक डूबी होती हैं कि नारी के सबसे बड़े आभूषण लज्‍जा को सबसे पहले तिलांजलि देती हैं फिर पतिविहीन रहने का निर्णय ले लेती हैं.  या तो शादी ही नहीं करतीं या तलाक ले लेती हैं या फिर पति से केवल औपचारिक संबंध रखती हैं. ये महिलायें फाइव स्‍टार कल्‍चर में ढली होती हैं इसलिये कोई इन पर उंगली उठाने का साहस नहीं कर पाता. ये पर-स्‍त्री लोलुप राजनेताओं तथा बड़े अधिकारियों को आसानी से अपने जाल में फंसा लेती हैं. भ्रष्‍ट नेता तथा अधिकारी तो स्‍वयं ही इस अंधे कुयें में कूदने को उतावले रहते हैं, खग जाने खग ही का भाषा वाले फार्मूले से तत्‍काल दोस्‍ती हो जाती है. इस प्रकार अवैध यौन संबंधों से बड़े बड़े ठेके और सप्‍लाई आर्डर हथिया लिये जाते हैं. लोग जो काम पैसों की मोटी रिश्‍वत दे कर नहीं करा पाते वे इन लिपी पुती महिलाओं को कुछ घंटों के लिये भेज कर आसानी से करा लेते हैं. ऐसी महिलायें भी अपनी इस लाइफ स्‍टाइल से खुश रहती हैं क्‍योंकि न तो किसी पुरुष (पति) की गुलामी करनी है, न ही घर गृहस्‍थी का झंझट उठाना है, न ही किसी के दबाव में रहना है. बड़े नेताओं और अधिकारियों से दोस्‍ती मुफ्त में. जिस महिला की पोलिटिकल तथा ब्‍यूरोक्रेटिक सर्किल में जितनी पकड़ होगी, बिजनेस हाउसेस में उसकी उतनी ही ज्‍यादा पूछ परख होगी. बड़े नेताओं तथा अधिकारियों को एंटरटेन करने का खर्च भी महिला को नहीं उठाना पड़ता क्‍योंकि यह खर्च भी संबंधित बिजनेस हाउस ही उठाता है. नेताओं तथा अधिकारियों से दोस्‍ती भी हो गई, कुछ खर्च भी नहीं हुआ, फ्री मौज मस्‍ती बोनस में मिली, इससे बढि़या और क्‍या हो सकता है.

     आज हर जगह सेक्‍स का बोल बाला हो रहा है. परीक्षा में पास होना है तो सेक्‍स चाहिये. नौकरी चाहिये तो सेक्‍स, अच्‍छी पोस्टिंग चाहिये तो सेक्‍स, मलाईदार पद चाहिये या पद पर बने रहना हो तो सेक्‍स. कई बार तो जीवित रहने के लिये सेक्‍स देना पड़ता है. गत वर्ष एक समाचार आया था कि कुछ पुलिस वालों ने कई लड़कियों को जबरन पकड़ कर उनके अश्‍लील एमएमएस बनाये फिर ब्‍लैक मेल कर सेक्‍स का आनंद स्‍वयं भी लेते रहे और अपने मित्रों को भी दिलाते रहे. एक बार किसी व्‍यक्ति का नाम थाने में दर्ज हो जाये तो कभी भी दिल बहलाने की व्‍यवस्‍था पुलिस वाले उसी के घर में कर लेते हैं नहीं तो उसे रोज थाने बुला कर जीवन कठिन बना देते हैं. आज के दौर में नाजायज सेक्‍स व्‍यवस्‍था का अभिन्‍न अंग बन गया है. सेक्‍स फार मार्क्‍स, सेक्‍स फार एपाइंटमेंट, सेक्‍स फार फ्यूचर, सेक्‍स फार पोस्टिंग, सेक्‍स फार जाब सेक्‍यूरिटी, सेक्‍स फार प्रमोशन/पोस्टिंग, सेक्‍स फार प्रोटेक्‍शन, सेक्‍स फार बिग कांट्रेक्‍ट्स, सेक्‍स फार बिग सप्‍लाई आर्डर्स, सेक्‍स फार इलेक्‍शन टिकिट, सेक्‍स फार मिनिस्‍टीरियल बर्थ, सेक्‍स फार एक्‍जेम्‍पशन फ्राम पेनाल्‍टी, सेक्‍स फार सरवाइवल. अब तो लोग दबी जुबान से ही सही, सेक्‍स फार कांस्‍टीट्यूशनल पोस्‍ट्स की भी चर्चा कर रहे हैं. हर जगह हर काम के लिये सेक्‍स पैरलल करेंसी की तरह काम कर रहा है, बल्कि सुपर करेंसी की तरह. आज की तारीख में इल्‍लीगल सेक्‍स अघोषित उद्योग का रूप धारण कर रहा है. बाबा रामदेव काला धन की माला जप रहे हैं और अन्‍ना हजारे सरकारी कार्यालयों में रिश्‍वतखोरी की किंतु सबसे बड़े उद्योग की शक्‍ल ले रहे कच्‍चे गोश्‍त (फ्लेश ट्रेडिंग) के इस धंधे की तरफ किसी का ध्‍यान नहीं जा रहा है.

मोकर्रम खान, वरिष्‍ठ पत्रकार/राजनीतिक विश्‍लेषक
पूर्व निजी सचिव, केंद्रीय शहरी विकास राज्‍य मंत्री. 
मोबाइल 9827079845, 9039879753 
e-mail : unsoldjournalism@gmail.com 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें