

फिल्मों में कॉमिक और संजिदा किरदार कर चुके राहुल बोस का कहना है कि कुछ सार्थक फिल्में कर लेने से समाज को बदला नहीं जा सकता है। बल्कि इसके लिए फिल्म निर्माताओं और सरकारी निकायों को मिलकर लोगों को शिक्षित करने के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे।43 वर्षीय अभिनेता राहुल बोस कहते हैं कि बदलाव तभी होगा जब लोग बदलाव के लिए तैयार होंगे और बहुत बड़ी आबादी अभी इसके लिए तैयार नहीं हैं।
राहुल कहते हैं महज दो फिल्में बदलाव नहीं ला सकती। इसके लिए 20 फिल्में चाहिए। सरकार को इसके लिए कदम उठाना चाहिए और इसके लिए सीधे विज्ञापन जारी किए जाने चाहिए। लोगों को शिक्षित करना होगा। निचले स्तर के लोगों को शिक्षित करना होगा और इसके लिए नृत्य और रंगमंच जैसे अन्य रास्ते भी अपनाए जा सकते हैं।
निर्देशक ओनीर की फिल्म आई एम में समलैंगिकों के साथ हो रहे भेदभाव के मुद्दे को उठाया गया है। राहुल कहते हैं कि फिल्म में इस बात को दिखाने का प्रयास किया गया है कि लोगों के बीच किसी भी तरह का भेदभाव खराब चीज है। जब कोई इस फिल्म को देखने के बाद बाहर निकलकर यह सोचेगा कि रंग लिंग धर्म और जाति के आधार पर लोगों के बीच भेदभाव करना गलत है तो ही इस फिल्म को बनाने का मकसद पूरा होगा।
गौरतलब है कि राहुल बोस ने वर्ष 1994 में अगस्तया सेन की फिल्म इंग्लिश अगस्त में अपने अभिनय की शुरुआत की थी। तब से लेकर राहुल कई सार्थक फिल्मों में काम कर चुके हैं। इसके अलावा राहुल ने मिस्टर एंड मिसेज अय्यरझंकार बीट्स 'चमेली और जैसी फिल्मों में काम कर चुके हैं।
फिल्म उद्योग में काफी समय बिताने और आकर्षक दिखने वाले राहुल फिल्मों को करियर के रूप में नहीं लेते। वह कहते हैं, "मेरे पास करियर नहीं बल्कि फिल्में हैं। लोग अपने करियर के बारे में सोचते हैं। मैं अगली फिल्म के बारे में कभी नहीं सोचता। बल्कि मैं फिल्मों के निर्देशक, भूमिकाएं और कहानी को ध्यान में रखकर उसका चुनाव करता हूं।
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