मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

नि:शक्तजन के अधिकारों को कानूनी संरक्षण दिया जायेगा

नि:शक्तजन के अधिकारों को कानूनी संरक्षण दिया जायेगा
नि:शक्तजन के अधिकारों को कानूनी संरक्षण दिया जायेगा
प्रस्तावित नि:शक्तजन अधिकार अधिनियम-2010 पर राज्य स्तरीय कार्यशाला
15 फरवरी 2011। नि:शक्तजन के अधिकारों को कानूनी संरक्षण प्राप्त हो और उन्हें समाज में आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक सहित अन्य क्षेत्रों में व्यापक आरक्षण मिले, इस सोच और लक्ष्य के साथ नि:शक्तजन अधिकार अधिनियम-2010 प्रस्तावित है। यह अधिनियम न्यायपूर्ण व्यावहारिक और क्रियान्वयन की दृष्टि से आसान हो इसके लिये देशव्यापी विचार-विमर्श का सिलसिला मध्यप्रदेश से प्रारंभ हो रहा है। इसमें प्रभावित व्यक्तियों के साथ ही नि:शक्तता के क्षेत्र में समर्पित भाव से काम कर रहे स्वयंसेवी संस्थाओं और व्यक्तियों के सुझाव शामिल किये जायेंगे। इसी मंशा और उद्देश्य के साथ आज भोपाल में नि:शक्तव्यक्ति अधिकार अधिनियम पर एक दिवसीय राज्य स्तरीय विचार-विमर्श कार्यशाला सम्पन्न हुई। इस कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में सचिव सामाजिक न्याय मध्यप्रदेश शासन श्री व्ही.के. बाथम, आयुक्त पंचायत एवं सामाजिक न्याय श्री एच.एल. त्रिवेदी, भारत सरकार की ओर से आयीं डॉ. उमा तुली, श्री ए. दत्ता, आयुक्त नि:शक्तजन मध्यप्रदेश श्री दीपांकर बैनर्जी और दिग्दर्शिका के श्री सुब्रत राय सहित प्रदेश भर से विकलांगता के क्षेत्र में काम कर रहे प्रतिनिधि उपस्थित थे।
सचिव सामाजिक न्याय श्री व्ही.के. बाथम ने कहा कि विकलांगता पर आज व्यापक विचार विमर्श करते हुए इससे प्रभावित पीड़ित व्यक्ति को पर्याप्त संरक्षण देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सिर्फ कानूनी प्रावधान ही इसके लिये काफी नहीं है। संरक्षण के प्रावधान अनिवार्य हो और इसमें दण्ड का भी प्रावधान हो तभी हम विकलांगों के अधिकारों का पूरी तरह संरक्षण कर पायेंगे। उन्होंने प्रस्तावित नि:शक्त अधिकार अधिनियम को एस.टी, एस.सी. अधिनियम के अनुरूप ही स्वरूप देने का सुझाव देते हुये कहा कि हमें हर क्षेत्र में ऐसी व्यवस्था करना होगी जिससे विकलांग व्यक्ति अपने आप को सहज और सुविधापूर्ण महसूस कर सकें।
आयुक्त पंचायत एवं सामाजिक न्याय श्री एच.एल. त्रिवेदी ने प्रस्तावित अधिनियम में सामाजिक समरसता के साथ ही सर्वस्वीकार्यता को जरूरी बताया है। उन्होंने कहा कि विकलांगों को रोजगार मिले, उन्हें बेहतर प्रशिक्षण मिले और निजी क्षेत्र भी इनकी मदद के लिय लोगे आगे आये, इस तरह के प्रयास हमें करना होंगे।
भारत सरकार द्वारा गठित समिति की सदस्य डॉ. उमा तुली ने प्रस्तावित नि:शक्तता अधिकार अधिनियम-2010 के प्रमुख बिन्दुओं को रेखांकित करते हुये कहा कि पुराने अधिनियम की कमियों को दूर करते हुये नये अधिनियम को सामाजिक दृष्टिकोण से अर्थपूर्ण, नि:शक्त फ्रेंडली, न्यायपूर्ण तथा हर क्षेत्र में अवसर आधारित बनाया गया है। उन्होंने कहा कि मंशा यह है कि यह अधिनियम इस तरह बनें जिसमें क्रियान्वयन और व्यावहारिकता की दृष्टि से कोई कमी न हो पाये। उन्होंने कहा कि नये अधिनियम में यह प्रावधान होगा कि अब इसका क्रियान्वयन केवल इच्छा पर निर्भर नहीं होगा बल्कि इसके क्रियान्वयन की बाध्यता भी होगी और समय-सीमा भी होगी। डॉ. उमा तुली ने कहा कि अधिनियम का मोटा स्वरूप देश के समक्ष है। जरूरत इस बात की है कि इस क्षेत्र में काम कर रहे लोग, विकलांगता से प्रभावित और पीड़ित लोग इसे पढ़ें, समझें और उनकी दृष्टि से इसमें क्या-क्या सुधार और जुड़ाव होना चाहिये इसके संबंध में अपने सुझाव दें। उन्होंने कहा कि इसी दृष्टि से देशव्यापी विचार-विमर्श के इस अभियान की शुरूआत मध्यप्रदेश से की गई है। उन्होंने इस बात की सराहना की कि मध्यप्रदेश विकलांगों के कल्याण की दिशा में और उनके प्रति संवेदनशीलता में देश में अग्रणी हैं।
प्रारंभ में आयुक्त नि:शक्तजन दीपांकर बैनर्जी ने कार्यशाला की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुये दिनभर की कार्य प्रक्रिया को रेखांकित किया।
Date: 15-02-2011 Time: 15:03:38

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