भोपाल Jan 06, 01:04 am
पड़ौसी राज्य छत्तीसगढ़ में आतंक का पर्याय बन चुके नक्सलवादी अब शांति का टापू कहे जाने वाले मध्यप्रदेश पर आंख गढ़ाए बैठे हैं। सूबे में आधा दर्जन से ज्यादा जिलों में नक्सलवादी गतिविधियां दिखाई देने लगी हैं। कहीं पर वे घुसपैठ की कोशिश में हैं तो कहीं आदिवासियों और अन्य ग्रामीणों से संपर्क स्थापित पैर रखने के लिए उपयुक्त जमीन तलाश रहे हैं।
जानकारों की मानें तो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर नक्सली हलचल बढ़ी है। केंद्र सरकार अब तक सूबे के इकलौते बालाघाट जिले को नक्सल प्रभावित जिला मानती है,लेकिन असलियत यह है कि बालाघाट के रास्ते नक्सलियों की पहुंच सात जिलों तक फैल चुकी हैं। ये जिले हैं डिंडोरी,मंडला,शहडोल,
अनूपपुर, सीधी और सिंगरौली। राज्य के गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता का कहना हैं कि '' हम केंद्र सरकार से लगातार आग्रह कर रहे हैं कि बालाघाट के अलावा अन्य जिलों को भी नक्सल प्रभावित माना जाए। '' बालाघाट के बाद सबसे ज्यादा नक्सली गतिविधि डिंडोरी जिले में देखी जा रही है। वहां तो एसएएफ मुख्यालय को डिंडोरी से हटाकर छत्तीसगढ़ की सीमा पर बसे करंजिया थाना क्षेत्र में कर दिया है। इसका मकसद सीमा पर पुलिस की मौजूदगी सुनिश्चित करना है। क्योकि पिछले दिनों अमरकंटक में हुई पुलिस आला अफसरों की बैठक में यह बात सामने आई थी कि छत्तीसगढ़ से नक्सली प्रदेश में घुसपैठ कर सकते हैं। डिंडौरी जिला चूंकि निशाने पर हैं इसलिए वहां पुलिस की मौजूदगी जरूरी है। बताया जाता है कुछ दिनों पूर्व नक्सलियों
की एक गैंग ने छत्तीसगढ के अचानक मार टाइगर रिजर्व से मप्र के सीमा से सटे गांव के ग्रामीणों से संपर्क किया था। पुलिस का जानकारी लगते ही सारे नक्सली भाग गए। गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता का इस बारे में
कहना है कि कई जगहों से घुसपैठ की सूचनाएं मिलती है। पुलिस मौके पर
पहुंचती है। कुछ लोग पकड़ में आते हैं और कई बार वे भाग भी जाते हैं। गुप्ता के मुताबिक हमारा खूफिया तंत्र जंगलों में पहुंच बना रहा है।
छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे गोपालपुरा
चौकी के गांव खुडिया के फारेस्ट नाके को नक्सली गतिविधियों के मद्देनजर सबसे संवेदनशील माना जा रहा है। यहां आए दिन नक्सलियों की आमद रफ्त बनी रहती हैं।
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