पूरा प्रदेश सूखे की कगार पर
भोपाल, 6 जनवरी 2011। मध्य प्रदेश पर इस बार की गर्मियां कहर बनकर सामने आ सकती है। सूबे का अधिकांष भू-भाग जलसंकट के मुहाने पर आ खड़ा हुआ है। मंजर यह है कि राज्य के जिस मालवा अंचल ने बीती बरसात में दषकों की स्मरणीय बाढ़ का नजारा देखा था, वहां सर्वाधिक पेयजल संकट की मार अभी से पड़ने लगी है।
जल, पर्यावरण या मानसून विषेषज्ञ भी इस विरोधाभासी अथवा विचित्र स्थिति को देखकर किंकर्त्तव्यविमूढ़ हैं। आधिकारिक जानकारी के अनुसार, राज्य के 23 जिलों में सालाना औसत के लिहाज से 22 से 54 प्रतिषत कम वर्षा हुई है।
ज्ञातव्य है कि समूचे राज्य में इस बार कुल 14 फीसदी कम वर्षा हुई है, लेकिन जो बारिष हुई, वह बड़े भू-भाग में बेहद अल्प और महाकौशल एवं विंध्य के कुछ हिस्सों में जमकर हुई। प्रदेष में औसत वर्षा का आंकड़ा 957.7 मिमी रहता है, इस बार महज 421.4 मिमी बारिष हो पाई है। वहीं मालवा अंचल के देवास जिले में तो शहरवासियों को तीन दिन में जलापूर्ति हो पा रही है। उज्जैन संभाग के 61 नगरीय निकायों में से महज एक दर्जन में ही नियमित जलापूर्ति हो पाने की भी एक बड़ी वजह यही है, तो इंदौर संभाग के 49 में से 39 निकाय भी ऐसे ही कारणों से अभी से पेयजल संकट से जूझने लगे हैं। राज्य के 360 नगरीय निकायों में से 130 में एक दिन के अंतराल से और दस निकायों में तीन दिन के अंतर से जलापूर्ति हो पा रही है। वैसे भी इंदौर उज्जैन एवं सागर संभाग राज्य के पारंपरिक जलसंकट वाले चिन्हित इलाकों में शुमार हैं। यही बदतर हालत ग्वालियर-चंबल संभाग में रहती है। लिहाजा राज्य के 50 में से चंद जिलों को छोड़कर शेष सभी को सूखा प्रभावित घोषित कर तुरंत व्यापक राहत कार्य शुरु करने की जरुरत आ पड़ी है, अन्यथा इंसान तो इंसान, पशुधन के समक्ष भी चारा और प्रकारांतर से प्राणों को संकट उठ खड़ा होगा। इसका बड़ा असर इस बार रबी फसल की आमद पर भी दिखाई दे सकता है।
Date: 06-01-2011
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