
महाबली हनुमान यहीं से संजीवनी बूटी ले आये थे
हिमालय की गोद में बसा हुआ गढवाल दिव्य मठ-मन्दिरों के लिये ही नहीं,अपितु नैसर्गिक सुषमा से भरपूर अनुपम एवं अद्वितीय सौन्दर्य स्थलों के लिये प्रसिद्ध है। पर्वतारोही डा.टी लौंगस्टाफ तो यहां तक कह गये कि छः बार पर्वतारोहण हेतु भ्रमण करने के पश्चात मुझे अब भी विश्वास है कि समस्त एशिया में गढवाल एक सुरम्य प्रदेश है। कहा जाता है कि फूलों की घाटी में आज भी परियां निवास करती हैं।
गढवाल की पर्वत श्रृंखलाओं पर रमणीक सरोवरों एवं जल-प्रपातों का क्षेत्र है सुन्दर हिमानियों के बीच अनेक गरम जल-धारायें हैं। गढवाल को अगर फूलों की घाटियों का भूखण्ड कहा जाय तो अतिश्योक्ती नहीं होगी। बद्रीनाथ मार्ग से कुछ हटकर फूलों की घाटी समुद्रतल से लगभग १३००० फुट की ऊंचाई पर लगभग ६ किमी लम्बे व २ किमी चौडे क्षेत्रफल में फैली हुई है। जोशीमठ-बद्रीनाथ मार्ग पर पाण्डूकेश्वर के समीप अलकनन्दा नदी के तट पर गोविन्दघाट से ही इस घाटी की यात्रा पारम्भ होती है। यहां से लगभग १० किमी की दूरी पर भ्यूंडार गांव तथा ४ किमी आगे घांघरिया है। घांघरिया(१०००० फुट) से एक मार्ग लक्ष्मणगंगा का पुल पार कर बांयी ओर फूलों की घाटी है, जिसकी दूरी लगभग ३.५ किमी है। घांघरिया से दूसरा मार्ग पुल के दाहिनी ओर का रास्ता हेमकुण्ड लोकपाल जाता है जो लगभग ५.५ किमी की दूरी पर स्थित है। हेमकुण्ड लगभग १५००० फुट की संसार की सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित सिक्खों का ख्याति पाप्त तीर्थ स्थान है। यहां पर एक सुन्दर सरोवर लोकपाल के नाम से प्रसिद्ध है तथा एक विशाल गुरुद्वारा है।
पौराणिक कथाओं एवं महाकाव्यों के अनुसार महाभारत में फूलों की घाटी का विस्तृत एवं रोमांचकारी वर्णन है। महाकवि कालीदास ने ”मेघदूत“ में इसका सजीव वर्णन किया है। फूलों की घाटी की खोज फ्रैंक स्मिथ ने की। यह विश्वविख्यात पर्वतारोही अपने दल के साथ कामेट पर्वत पर विजय पाप्त कर लौटते हुए नीती घाटी में धवली नदी के समीप गमसाली स्थान पर पंहुचा और भटकते हुए उन्होंने पश्चमी पर्वतीय मार्ग पकडा। लगभग १६७०० फुट की ऊंचाई पर भ्यूंडार दर्रे को पार कर गंधमादन पर्वत श्रृंखला से नर-नारायण पर्वत व बद्रीनाथ की ओर आ रहे थे कि वह और उनके साथी नीचे हेमकुण्ड शिखर से उस रमणीक घाटी को पुष्पों से भरी हुई देखकर आश्चर्यचकित तथा आनन्द विभोर हो गये। फ्रैंक स्मिथ के शब्दों में हमने जितना जो कुछ देखा उसकी तुलना में इस सुरम्य भ्यूंडार घाटी का कोई जवाब नहीं है। हम पहली बार उसमें दो दिन रहे थे, और बाद में उसे ”फूलों की घाटी“ के नाम से स्मरण करते थे।
स्मिथ कुछ पुष्पों के नमूने भी अपने साथ ले गये थे। इस रमणीक घाटी को देखकर वह इतने मंत्र मुग्ध हो गये कि पुनः १९३७ में एडिनबरा बोटोनिकल गार्डन्स की ओर से वह इस घाटी में तीन माह विश्राम कर लगभग ३५० किस्म के फूलों के बीज स्वदेश ले गये। इस पर उन्होंने एक सुन्दर तथा सचित्र पुस्तक “फूलों की घाटी“ नाम से लिखी है, जिसके फलस्वरुप यह छिपी हुई सुन्दर घाटी कालान्तर में अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हो गई। स्मिथ से पूर्व कई भारतीय इस घाटी से परिचित तो थे, लेकिन इसकी ख्याति तथा रहस्योद्घाटन स्मिथ की इस सचित्र पुस्तक के माध्यम से ही हुआ। यदि यह पुस्तक प्रकाशित न होती तो, फूलों की घाटी का यह आकर्षण तथा अन्तरराष्ट्रीय महत्व शायद छिपा ही रहता। उनकी इस पुस्तक ने संसार के वनस्पति शास्त्रियों को भी आश्चर्यचकित कर दिया।
इन फूलों के बीजों की सफलता देखकर न्यू बोटोनिकल गार्डन्स लन्दन की ओर से कुमारी जोन मारग्रेट लैगी इस घाटी में फूलों को चुनते हुए फिसल कर गिर पंडी, और सदा के लिये फूलों की सैया पर सो गई। वहां पर उसकी कब्र के ऊपर सफेद संगमरमर के पत्थर पर उसकी पावन स्मृति में अंकित है- जोन मारग्रेट लैगी, जन्म- २१ फरवरी, १८८५, निधन ४ जुलाई, १९३९ की पुण्य स्मृति में मेरी दृष्टि हिमालय में जायेगी, जहां से मुझे शक्ति प्राप्त हुई है।
इस घाटी में आवागमन मई से अक्टूबर तक रहता है, लेकिन सम्पूर्ण घाटी आकर्षक तथा अद्वुत रंग-बिरंगे फूलों से जुलाई मध्य से अगस्त तक ढकी रहती है। इसी मौसम में पर्यटक तथा सौन्दयप्रेमी इन फूलों के बाहुल्य और आकर्षण से आनन्दविभोर हो उठते हैं। सैकडों प्रजाति के विभिन्न रंगीन फूलों से शोभायमान यह सुरम्य सम्पूर्ण घाटी एक विभिन्न तथा रंगीन पुष्पोद्यान का स्वरुप धारण कर धरती पर एक अलौकिक और दिव्य सौन्दर्य बिखेर देती है। इसलिये इस रमणीक घाटी को पुष्पों का स्वर्ग और नन्दन कानन भी कहते हैं।
घाटी के ऊपर ढालदार पहाडी पर ब्रहमकमल के बडे फूल तथा अनेक किस्म की छोटी बडी जंगली फूलों की झाडयां फूली रहती हैं। जो होलीहूक, आइरिश, डायन्यश, डेकी, लिली, पौपी, केन्डूला, कैरोसिस, पैटीनिया, मेंहदी, गेंदा, सूर्यकमल, जंगली तुलसी, बुरांस, कौसमोस, CYkkLkEk]हिमालय आर्किड, कुमुदनी आदि के नाम से जाने जाते हैं, इसके अलावा अतीस, दिव्यकंद, चिरायती, जटामासी, भूतकेश, कटुकी, बज्रदन्ती, ब्रहमी, सर्पगन्धा, मीठे का जड, कुट,शिवधतूरा, निर्विसी, भमीरी, पाषाणभेद आदि अनेक प्रकार की जडी-बूटियां पाई जाती हैं। किंवदन्ती है कि मेघनाद के साथ लंका युद्ध में लक्ष्मण जी के मूच्र्छित होने पर महाबली हनुमान इसी घाटी से संजीवनी बूटी की खोज कर लाये थे।
चारों ओर ग्लेशियरों से निकलती हुई अनेक हिमानी जल धारायें, छोटे-बडे सरोवर तथा छोटे-बडे बुग्याल(चारागाह) घाटी को आकर्षक बना देते हैं। अनेक जंगली पक्षी, पहाडी मोर, मोनाल, हिमालय तीतर, चकोर आदि भी दिखाई देते हैं।
किवदंती है कि जब पाण्डव अपने अज्ञातवास के समय पाण्डूकेश्वर में निवास करते थे तो द्रौपदी ने अलकनन्दा व लक्ष्मणगंगा के संगम पर जहां आज गोविन्दघाट है, स्नान करते समय एक सुन्दर तथा दिव्य कमल के फूल को बहते हुए देखा। द्रौपदी ने जब इस प्रकार के अद्वुत कमल के फूल लाने की हट की तो, महाबली भीम तुरन्त उस प्रकार के सुन्दर कमल के फूल की खोज में नदी के किनारे-किनारे इस घाटी में, जिसको प्राचीन काल में भ्यूंधार घाटी भी कहते थे, पंहुचे और उन्हें वहां फूलों का विशाल उद्यान दिखाई दिया। उन्होंने यहां से ब्रहमकमल का सुन्दर फूल तोडकर द्रौपदी को भेंट किया। यह एक विचित्र एवं सुन्दर कमल है, जो जमीन पर हिम पिघलने के बाद उगता है। जबकि अन्य कमल सरोवरों में उगते हैं। इस दुर्लभ ब्रहमकमल के फूल को बद्रीनाथ-केदारनाथ आदि मन्दिरों में विशेष पूजा के प्रयोग हेतु लाया जाता है। ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि लक्ष्मण जी ने अपने को इसी रमणीक भ्यूंधार घाटी में समाधिस्थ किया था। इस घाटी के लोकपाल सरोवर के पार्श्व में भी लक्ष्मण जी का प्राचीन छोटा मन्दिर है। कहा जाता है कि फूलों की घाटी में आज भी परियां निवास करती हैं।
फूलों की घाटी की यात्रा अब उतनी कठिन नहीं, जितनी हिमालय प्रेमी, फ्रैंक स्मिथ अथवा जोन मारग्रेट के लिये रही होगी। लेकिन यह रमणीक विश्वविख्यात फूलों की घाटी अभी भी किस प्रकार उपेक्षित तथा अविकसित है, यह पर्यटक तथा सौन्दयप्रेमी को उस मनोहर घाटी का भ्रमण कर अनुभव होता है। यदि हेमकुण्ड अथवा फूलों की घाटी पंहुचने की कठिनाइयों की चिन्ता करें, चढाईयुक्त वातावरण में श्वास लेने के संघर्ष में उलझें और मार्ग की महकीली फूलों की गन्ध से सिरपीडा की ओर ध्यान दें, तब तो यह मार्ग कष्टों से भरा पडा है। लेकिन यदि हृदय में प्रकृति की नैसर्गिक छटा से प्रेम है, कल-कल करते झरनों से, हर-हर करती लक्ष्मण गंगा के संगीतमय स्वर से लगाव है, और लक्ष्मण मंदिर तथा गुरु गोविन्द सिंह की तपस्थली हेमकुण्ड में कुछ आस्था है, तब इस विश्वविख्यात रमणीक फूलों की घाटी का मार्ग कष्टसाध्य होते हुए भी गढवाल हिमालय के अनुपम सौन्दर्य एवं मनोहारी हिमानी आकर्षण से भरा पडा है।
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