दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने एक फै
सले में कहा है कि एक हिंदू और गैर हिंदू के बीच केवल हिंदू परंपराओं से की गई शादी हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए) के तहत न तो वैध है और न ही पार्टियाँ इसके तहत किसी प्रकार के लाभ का दावा कर सकती हैं।
अदालत ने यह भी कहा कि हिंदुत्व में और सैद्धांतिक आस्था के तहत देखा जाए, तो कोई भी तब तक हिंदू नहीं बन सकता, जब तक वह वास्तव में इस धर्म में धर्मांतरित न हो जाए ।
न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर ने एक फैसले में कहा, ‘तथ्य मात्र यह है कि केवल हिंदू परंपराओं से आयोजित की गई शादियों में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत मिलने वाले लाभ नहीं मिल सकते क्योंकि इस अधिनियम के तहत यह अनिवार्य है कि शादी दो हिंदुओं के बीच ही होनी चाहिए।’
अदालत ने एक महिला की याचिका खारिज करते हुए यह फैसला दिया है। इस महिला की 2007 में हिंदू परंपराओं से आर्य समाज मंदिर में एक इसाई से शादी हुई थी, जिसके बाद अब इस महिला ने एचएमए के तहत तलाक की अर्जी दाखिल की थी।
अदालत ने कहा कि शादी के आयोजन के समय दोनों पक्षों का हिंदू होना जरूरी है। अदालत ने कहा, ‘यह साबित करना बाध्यता है कि विवाह के आयोजन के समय दोनों पक्ष हिंदू थे।’
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