गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

राजीव की हत्या में किसका हाथ था?


पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राजीव गांधी की हत्या के 20 साल बाद भी कांग्रेस को संदेह है कि उनकी हत्या की साज़िश श्रीलंका के तमिल विद्रोही संगठन (एलटीटीई) ने रची थी. कांग्रेस को यह संदेह तब है जब सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में फ़ैसला सुनाए दस वर्ष से ज़्यादा समय बीत चुका है और ख़ुद एलटीटीई की ओर से राजीव गांधी की हत्या के लिए माफ़ी मांगी जा चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में भी कहा था कि एलटीटीई प्रमुख वी प्रभाकरण की ओर से राजीव गांधी के प्रति व्यक्तिगत दुश्मनी की भावना की वजह से उनकी हत्या की गई.

वर्ष 1991 में 21 मई को चेन्नई के पास श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी जनसभा के दौरान एक आत्मघाती हमलावर ने राजीव गांधी की हत्या कर दी थी.

इस संदेह के बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस के प्रवक्ता शकील अहमद ने कहा है कि एलटीटीई के इसमें शामिल होने पर तो कोई शक नहीं है लेकिन हो सकता है कि इसमें और लोग भी शामिल रहे हों.

संदेह
यह संदेह कांग्रेस ने अपनी स्थापना के 125 वर्ष पूरे हो जाने के अवसर पर निकाली गई किताब ‘कांग्रेस एंड मेकिंग ऑफ़ द इंडियन नेशन’ में व्यक्त किया है.

दो खंडों में प्रकाशित इस किताब के पहले खंड में कहा गया है, “श्रीलंका में जातीय मामले को सुलझाने की अपनी कोशिशों की वजह से राजीव गांधी को अपनी जान गँवानी पड़ी.”

इसमें कहा गया है, “एलटीटीई ने उनके (राजीव गांधी के) ख़िलाफ़ रंजिश पाल ली थी इसलिए शायद उसने (एलटीटीई ने) उनकी (राजीव गांधी की) हत्या की साज़िश रची.”

जबकि केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) के विशेष जाँच दल हत्याकांड की जाँच करते हुए एलटीटीई के प्रमुख वी प्रभाकरण और एलटीटीई के ख़ुफ़िया विभाग के प्रमुख पोट्टु अम्मन को हत्या के षडयंत्र के लिए मुख्य अभियुक्त माना था.

आत्मघाती हमला करने वाली तेनमोझी राजरत्नम यानी धानु भी एलटीटीई की कार्यकर्ता थी और उनके साथ घटनास्थल पर मौजूद शिवरासन भी.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में वर्ष 1999 में अंतिम फ़ैसला सुनाया था.

हालांकि एलटीटीई हमेशा ही राजीव गांधी की हत्या में अपना हाथ होने से इनकार करता रहा लेकिन जून 2006 में एलटीटीई की ओर से बालासिंघम ने खेद जताते हुए कहा था, “राजीव गांधी की हत्या एक बड़ी ऐतिहासिक त्रासदी थी.”

इसके बाद कांग्रेस की ओर से तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री आनंद शर्मा ने इस माफ़ीनामे को अस्वीकार करते हुए कहा था कि तमिल छापामारों को कभी माफ़ नहीं किया जा सकता. संयोगवश वे इस किताब के संयोजक भी हैं.

एलटीटीई राजीव गांधी से इसलिए नाराज़ था क्योंकि उन्होंने 1987 में श्रीलंका सरकार के साथ हुए एक समझौते के बाद एलटीटीई के ख़िलाफ़ संघर्ष में श्रीलंकाई सेना का साथ देने के लिए भारतीय शांति सेना को वहाँ भेजा था.

इसी किताब में कहा गया है कि शांति सेना से श्रीलंका के सिंहली लोग भी नाख़ुश थे क्योंकि एक बाहरी सेना उनके अंदरूनी मामले में दखल दे रही थी और तमिल इसलिए नाख़ुश थे क्योंकि सेना एलटीटीई से लड़ रही थी.

जबकि बीबीसी हिंदी के प्रमुख अमित बरूआ का कहना है कि यह कहना एकदम ग़लत है कि सिंहली जनता भारतीय शांति सेना से नाराज़ थी क्योंकि सेना का जाफ़ना में भव्य स्वागत किया गया था और वे ख़ुश थे कि भारतीय सेना एलटीटीई के साथ संघर्ष में साथ दे रही है.

पाकिस्तान एजेंट
कांग्रेस के इतिहास पर प्रकाशित इस किताब के मुख्य संपादक प्रणब मुखर्जी हैं.

इसमें कहा गया है कि ‘वर्ष 2009 के शुरुआत में कूटनीतिक दबाव में पाकिस्तान को यह स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा कि नवंबर, 2008 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों के लिए उसके (पाकिस्तान के) एजेंट ज़िम्मेदार थे.’

जबकि यह सच नहीं है. जब भारत ने पाकिस्तान पर आरोप लगाए थे तो पाकिस्तान की ओर से कहा गया था कि इन हमलों के पीछे पाकिस्तान के ‘नॉन स्टेट एक्टर्स’ शामिल थे. यानी वे लोग जो सरकार का हिस्सा नहीं है.

पाकिस्तान ने आज तक यह स्वीकार नहीं किया है कि मुंबई हमलों में किसी सरकारी तंत्र का हाथ था.

इसी किताब में एक जगह पाकिस्तान को भारत का पारंपरिक दुश्मन कहा गया है.

किताब कहती है, “अफ़ग़ानिस्तान में आतंक के ख़िलाफ़ युद्ध में अमरीका का सहयोगी होने की वजह से भारत का पारंपरिक दुश्मन पाकिस्तान मज़बूत हुआ है.”

जबकि चीन के बारे में कहा गया है, “चीन, जो अब एक आर्थिक महाशक्ति है, अब भारत के साथ सैन्य और आर्थिक दोनों ही मुद्दों पर समझौता करने के मूड में नहीं दिखता.”

कांग्रेस की ओर से पाकिस्तान और चीन दोनों के विषय में कही गई ये बातें भारत सरकार की घोषित विदेश नीति के एकदम ख़िलाफ़ दिखती हैं.

इसके अलावा अमरीका के साथ हुए जिस परमाणु समझौते को यूपीए सरकार एक ऐतिहासिक समझौता कहती रही है उसका ज़िक्र कांग्रेस इस तरह से नहीं करती.

इस किताब में जहाँ भी परमाणु समझौते का ज़िक्र है वहाँ अमरीका के अलावा फ़्रांस, रूस और कज़ाकस्तान का भी ज़िक्र है.

कांग्रेस की सफ़ाई
कांग्रेस प्रवक्ता शकील अहमद ने एलटीटीई को लेकर संदेह के सवाल पर बीबीसी से कहा कि ये किताब कांग्रेस की सहमति के आधार पर कुछ इतिहासकारों ने लिखी है.

उनका कहना है कि राजीव गांधी की हत्या के लिए एलटीटीई के कई कार्यकर्ताओं को सज़ा हुई है. जिन्हें मौत की सज़ा हुई है उनमें से कुछ की सज़ा माफ़ी की अपील विचाराधीन है, इसलिए ये तो एक तरह से साफ़ है कि एलटीटीई का हाथ इसमें था.

लेकिन ऐसे में किताब में एलटीटीई को लेकर संदेह क्यों जताया गया, इस सवाल पर उन्होंने कहा, “यह भी हो सकता है कि इसमें और लोग भी शामिल हों लेकिन एलटीटीई के शामिल होने पर तो कोई संदेह नहीं है.”

उन्होंने कहा, “हो सकता है कि बात कहने का अंदाज़ कुछ अलग हो लेकिन संदेह नहीं है.”

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