प्रदेश में एक लाख से अधिक वनवासियों को हक प्रमाण—पत्र वितरित
Bhopal:Monday, September 20, 2010:
मध्यप्रदेश में वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अब तक एक लाख तीन हजार 28 दावों में वनवासियों को हक प्रमाण-पत्र वितरित किये जा चुके हैं। लगभग 25 हजार वनवासियों को कब्जों के हक प्रमाण-पत्र वितरित किये जाने की कार्यवाही की जा रही है। आदिम जाति कल्याण मंत्री कुँवर विजय शाह ने विभागीय अधिकारियों को निर्देश दिये हैं कि वनवासियों को उनके हक प्रमाण-पत्र सार्वजनिक कार्यक्रमों में जन-प्रतिनिधियों की उपस्थिति में वितरित किये जायें। अधिनियम के अंतर्गत एक लाख से अधिक वनवासियों को हक प्रमाण पत्र का वितरण
अधिनियम के श्रेष्ठ क्रियान्वयन के लिये मध्यप्रदेश को पुरस्कार
मध्यप्रदेश की गिनती देशभर में उन राज्यों में होती है जिन राज्यों में वन अधिकार अधिनियम का श्रेष्ठ क्रियान्वयन हुआ है। श्रेष्ठ क्रियान्वयन के लिये इस वर्ष अप्रैल में नई दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में मध्यप्रदेश को पुरस्कृत भी किया जा चुका है।
वन अधिकार अधिनियम के तहत 8 हजार 267 सामुदायिक दावे भी प्राप्त हुए। यह दावे वनभूमि में सार्वजनिक उपयोग जैसे आम रास्ता, शालाओं, पेयजल व्यवस्था अन्य बुनियादी सुविधाओं से जुड़े हुए थे। प्राप्त सामुदायिक दावों में से चार हजार के करीब दावों को मान्य करते हुए उनका निराकरण किया गया है। प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत प्राप्त दावों के निराकरण के लिये ग्राम स्तर, खण्ड स्तर, जिला स्तर पर समितियों का गठन किया गया था। इन समितियों में जन-प्रतिनिधियों के साथ-साथ महिलाओं की भी भागीदारी सुनिश्चित की गई। राज्य स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा इस पूरे कार्य की लगातार मानीटरिंग की गई। वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत चार लाख 733 दावे प्राप्त हुए। प्राप्त दावों में से लगभग 99 प्रतिशत दावों का निराकरण किया जा चुका है।
वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत जनजाति के वनवासियों के साथ-साथ अन्य परम्परागत वनवासियों को उनकी भूमि के अधिकार दिये जाना था। अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार जनजाति वर्ग के ऐसे वनवासियों को अधिकार दिये जाना था जो 13 दिसम्बर, 2005 से पूर्व वनभूमि पर काबिज हों। अन्य परम्परागत वनवासियों को वनभूमि पर अधिकार दिये जाने के लिये यह प्रावधान है कि वह 13 दिसम्बर, 2005 से पूर्व तीन पीढ़ियों से उस भूमि पर काबिज हो। अधिनियम में प्रत्येक पीढ़ी का आशय 25 वर्ष की अवधि निर्धारित किया गया है।
प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम के कार्य के विस्तार को देखते हुए यह आवश्यक समझा गया कि सर्वे और सत्यापन कार्य के लिये पुरानी तकनीक से सर्वेक्षण करना कठिन होगा और निर्धारित समय में कार्य पूर्ण नहीं हो सकेगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) आधारित पर्सनल डिजिटल असिस्टेंट (पीडीए) तकनीक का प्रयोग करने का निर्णय लिया गया। मोबाईल फोन की तरह यह मशीन 150 ग्राम वजन की है और इससे किसी भी स्थान पर अक्षांश/देषांश तुरंत चिन्हित हो जाता है और सर्वे किये जाने वाले क्षेत्र की सीमाओं पर मशीन ले के चलने से न केवल उसका मानचित्र तैयार हो जाता है बल्कि उसका क्षेत्रफल भी प्राप्त हो जाता है। प्रदेश में आधुनिक तकनीक वाले पी.डी.ए. से सावधानीपूर्वक किये गये सर्वेक्षण में त्रुटि की संभावना न के बराबर रह गई।
वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत जिन वनवासियों ने पूर्व में हक प्रमाण-पत्र के लिये अपने आवेदन नहीं दे सके हैं वे वनवासी आगामी दो अक्टूबर को होने वाली ग्रामसभाओं में अपने दावे प्रस्तुत कर सकेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें