गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

विदेशी कम्पनियां भी मप्र में सोलर पार्क बना सकेंगी

शिवराज सरकार ने जारी की सौर्य ऊर्जा पार्क क्रियान्वयन नीति
भोपाल 13 फरवरी 2013। ऊर्जा के प्राकृतिक स्रोत सोलर एनर्जी के उत्पादन हेतु प्रदेश की शिवराज सरकार ने 18 जुलाई,2012 को सौर ऊर्जा आधारित परियोजनाओं की क्रियान्वयन नीति-2012 बनाई गई थी। अब इस नीति के क्रियान्वयन हेतु सौर ऊर्जा पार्क विकास नीति राज्य के नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा विभाग द्वारा जारी की गई है। इस नीति के तहत अब विदेशी कम्पनियां भी प्रदेश में सोलर पार्क निर्मित कर सकेंगी। लेकिन ऐसी विदेशी कंपनी को सोलर पार्क बनाने हेतु आवेदन-पत्र देने के बाद और राज्य शासन से आवंटन के पूर्व भारत में पंजीकृत कंपनी बनानी होगी।
यही नहीं, विदेशी कंपनी को भी अन्य आवेदनकत्र्ता भारतीय कंपनियों की तरह न्यूनतम टर्न ओवर आवेदित क्षमता पर रुपये 5 करोड़ प्रति मेगावाट होना आवश्यक होगा अर्थात यदि आवेदनकत्र्ता 100 मेगावाट क्षमता के लिये आवेदन करता है तो उसका न्यूनतम टर्नओवर 500 करोड़ रुपये एवं उसके द्वारा पूर्व में 50 मेगावाट क्षमता की सौर परियोजनायें क्रियान्वित की गई हों, होना चाहिये। इस नई क्रियान्वयन नीति के तहत सौर ऊर्जा पार्कों की स्थापना राज्य शासन द्वारा स्वयं अथवा सार्वजनिक-निजी क्षेत्र सहभागिता यानी पीपीपी के माध्यम से प्रदेश के उचित स्थानों पर की जा सकेगी। लघु एवं मध्यम उद्यम क्षेत्र यानी एसएमई सेक्टर को सौर प्रणालियों के विभिन्न कलपुर्जों तथा प्रणालियों के विनिर्माण हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा। इस नई नीति के अंतर्गत केवल नये संयंत्रों तथा मशीनों को ही स्थापित किये जाने की पात्रता होगी।
नई नीति के तहत सौर पार्क का विकास चार प्रकार से हो सकेगा। एक, पूर्णत: निजी निवेश के माध्यम से शासकीय भूमि पर सौर ऊर्जा पार्क का विकास। दो, निजी विकासक द्वारा शासकीय भूमि पर, पार्क के विकास में आने वाली लागत में शासन के साथ भागीदारी के माध्यम से विकास। तीन, शासन द्वारा निजी भूमि पर सौर ऊर्जा पार्क का विकास। चार, निजी विकासक द्वारा निजी भूमि पर, पार्क के विकास में आने वाली लागत में शासन के साथ भागीदारी के माध्यम से सौर पार्क का विकास। चारों विकल्पों में 25 प्रतिशत बिजली राज्य पावर मेनेजमेंट कंपनी को विक्रय करना होगी। 
नई नीति के तहत सोलर पावर पार्क न्यूनतम सौ मेगावाट क्षमता के हो सकेंगे। विकासक के चयन के बाद आवंटित परियोजना निर्माण, स्वामित्व, परिचालन तथा हस्तांतरण यानी बूट के आधार पर संचालित होगी। बूट की अवधि जो वाणिज्यिक प्रचालन तिथि से प्रारंभ होगी, की अवधि 25 वर्ष होगी। बूट की अवधि के अंत में संपूर्ण परियोजना जिसमें चल-अचल संपत्तियां सम्मिलित होंगी, बिना मूल्य के राज्य शासन को हस्तांतरित होगी। इस समय में वृध्दि का अधिकार राज्य शासन के पास रहेगा। 24 माह में सौर संयंत्र की स्थापाना करना जरुरी होगा।
नई नीति में कहा गया है कि सौर पार्क शासन की ऐसी राजस्व भूमि जो बंजर या अनुपयोगी या गैर कृषि एवं गैर वन या निजी भूमि पर किया जायेगा। पार्क हेतु उपयोग किये जाने वाली भूमि एक चक न्यूनतम सौ हेक्टेयर होनी चाहिये। यदि न्यूनतम भूमि सौ हेक्टेयर है तो तो इससे लगी अन्य भूमि पचास हेक्टेयर होना चाहिये। लगी हुई भूमि 10 किलोमीटर त्रिज्या यानी रेडियस के अंदर व पार्क के उपयोग में आने वाली भूमि का कोई भी अंतिम छोर 20 किलोमीटर दूरी के अंदर होना चाहिये।  अपेक्षित भूमि पर पर्याप्त सौर विकिरण होना चाहिये। यदि विकासक द्वारा शासकीय भूमि का चयन किया जाता है तो भूमि के पुष्टिकरण हेतु जिला कलेक्टर को अग्रेषित किया जायेगा। जिला कलेक्टर ऐसी भूमि को नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा विभाग को हस्तांतरित करेगा। नई नीति के तहत निर्मित सौर पार्क को राष्ट्रीय सौर मिशन के लाभ मिल सकेंगे।


  - डॉ. नवीन जोशी 

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