बुधवार, 26 दिसंबर 2012

सिर्फ सरकारी सेवा में रहने से नहीं मिलेगा निवास प्रमाण-पत्र का हक

भोपाल 26 दिसंबर 2012। अब मप्र सरकार अथवा राज्य सरकार के अन्तर्गत स्थापित संस्था या निगम या मंडल या आयोग में सेवारत होने अथवा सेवा से रिटायर होने पर कर्मी को मप्र का मूल निवासी होने का प्रमाण-पत्र प्राप्त हासिल करने का हक नहीं होगा बल्कि ऐसे सेवारत या रिटायर्ड कर्मी को सचमुच मप्र में निवास करना जरुरी होगा। यह नया प्रावधान किया है राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग ने। इस संबंध में उसने नये मापदण्ड जारी कर दिये हैं।
विभाग ने 20 दिसंबर,2011 को स्थानीय निवास प्रमाण-पत्र जारी करने के निर्देश जारी किये थे। इन निर्देशों की कंडिका क्रमांक चार में मप्र के स्थानीय निवासी की पात्रता के लिये मापदण्ड था कि आवेदक राज्य शासन का सेवारत या सेवानिवृत्त शासकीय सेवक हो। लेकिन अब विभाग ने अपने ताजा जारी नये निर्देशों में यह मापदण्ड समाप्त कर दिया है। इसी प्रकार वर्ष 2011 के निर्देशों की कंडिका क्रमांक पांच में मापदण्ड था कि आवेदक मप्र शासन के अन्तर्गत स्थापित संस्था या निगम या मंडल या आयोग का सेवारत अथवा सेवानिवृत्त कर्मचारी हो। लेकिन अब इस प्रावधान के बाद परन्तुक जोड़ा गया है कि ''''परन्तु राज्य शासन अथवा राज्य शासन के अधीन संस्था या निगम या मंडल या आयोग के ऐसे कार्यालय जो मप्र राज्य की भौगोलिक सीमा के बाहर स्थित हैं, में नियोजित कर्मचारी को वर्ष 2011 में जारी मापदण्डों की कंडिका क्रमांक एक या दो या तीन में से किसी एक की पूर्ति करना आवश्यक होगा।"
ज्ञातव्य है कि वर्ष 2011 में जारी मापदण्डों में कंडिका क्रमांक में कहा गया है कि आवेदक मप्र में पैदा हुआ हो तथा मप्र राज्य में स्थित किसी भी शिक्षण संस्थान में निरन्तर कम से कम तीन वर्ष तक शिक्षा प्राप्त की हो (मूक,बधिर,अन्ध तथा अशिक्षित के प्रकरण में शिक्षा का प्रावधान लागू नहीं होगा)। इसी प्रकार कंडिका क्रमांक दो में कहा गया है कि आवेदक मप्र में कम से कम 15 वर्ष से निरन्तर निवासरत हो। कंडिका क्रमांक तीन में कहा गया है कि आवेदक मप्र में पिछले दस वर्षों से निरन्तर निवासरत हो और मप्र में अचल संपत्ति धारित करता हो या उद्योग या व्यवसाय करता हो।

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