सैटेलाइट से अफीम एवं गांजे की अवैध खेती पर होगी नजर
भोपाल 19 फरवरी 2011। प्रदेश में जल्दी ही सैटेलाइट से अफीम एवं गांजे की अवैध खेती पर नजर रखी जा सकेगी। इस संबंध में प्रदेश की नारकोटिक्स विंग ने एक प्रस्ताव दिल्ली स्थित नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के महानिदेशक को भेजा है।
मुख्यत: तीन जिलों नीमच, मंदसौर और रतलाम में 13 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में अफीम की खेती होती है। इसके लिए वैध तौर पर 34 हजार किसानों को पट्टे दिए गए हैं। लेकिन कई किसान निर्धारित पट्टे से अधिक क्षेत्रफल पर अफीम की खेती करने लगते हैं। फसल की पैदावार को कम दिखाकर उसका एक हिस्सा खुले बाजार में बेच देते हैं। अभी इन गड़बडिय़ों पर मैनुअली नियंत्रण मुश्किल हो रहा है। इससे निपटने के लिए अब नारकोटिक्स विंग ने सैटेलाइट तस्वीरों के इस्तेमाल के लिए वन विभाग के आईटी सेल से मदद मांगी है। वन विभाग अपने क्षेत्र पर नजर रखने के लिए इसरो से सैटेलाइट तस्वीरें खरीदता है। नारकोटिक्स विंग इन्हीं तस्वीरों का इस्तेमाल करेगा।
कैसे होगा काम?
एक विशेष सॉफ्टवेयर होगा। हर फसल का विशिष्ट सिग्नेचर भी तैयार होगा। यह मनुष्य के थंब इम्प्रेशन (अंगूठे का निशान) की तरह काम करता है। अंगूठे के निशान की तरह फसल का सिग्नेचर भी अलग होगा। यह सॉफ्टवेयर सैटेलाइट की तस्वीरों और सिग्नेचर के मिलान से पता लगा लेगा कि किस क्षेत्र में कौन-सी फसल लगी हुई है। नारकोटिक्स विंग के पास अफीम के पट्टों की पहले से ही जानकारी होती है। यदि पट्टों की सीमा के बाहर अफीम बोई गई होगी तो उसके सिग्नेचर से इसका पता लग जाएगा। इसी तरह जहां भी गांजे की खेती का भी पता लग जाएगा।
मूर्ख बनाना असंभव होगा
किसानों और अधिकारियों के बीच अक्सर अफीम की पैदावार को लेकर खींचतान रहती है। किसान की कोशिश होती है कि फसल की उत्पादकता का आंकलन कम हो, ताकि कुछ अफीम बचाकर ऊंचे भावों पर बेची जा सके। सैटेलाइट की तस्वीरें यह भी बता सकेंगी कि अफीम की पैदावार कैसी है। इसी आधार पर प्रति हेक्टेयर उत्पादकता निर्धारित की जा सकेगी।
Date: 19-02-2011 Time: 10:50:01
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