रविवार, 5 मई 2013

भारतीय परिवार व्यवस्था में सम्पूर्ण सृष्टि का कल्याण – सुश्री निवेदिता भिड़े


भोपाल 5 मई 2013। हमारे यहाँ मनस्वियों ने गृहस्थ जीवन को भी आश्रम कहा है। आश्रम अर्थात तपस्या करने का स्थान। हमें देश की भावी पीढी का निर्माण तपस्या की तरह करना है। इसके साथ ही जो समाज हम बच्चों के दें, वह भी अच्छा बने यह भी गृहस्थ की ही जिम्मेदारी है। ब्रह्मचर्य आश्रम में केवल स्वयं की सामर्थ्यवृद्धि, ज्ञान प्राप्ति, गृहस्थाश्रम में मैं और मेरा परिवार, वान्यप्रस्थ में समाज हितैषी भूमिका तथा संन्यास में समूची सृष्टि के कल्याण हेतु सचेष्ट सक्रिय, यही है भारतीय परिवार व्यवस्था, जिसे समूर्ण विश्व आज आदर्श मान रहा है। इस जीवन दृष्टि को अपनाकर ही भारत पुनः जगतगुरू बन सकता है। यह विचार व्यक्त किये विवेकानंद केंद्र की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुश्री निवेदिता भिड़े ने। वे आज स्थानीय प्रज्ञा दीप विद्या प्रतिष्ठान कार्यालय माता मंदिर चौराहे पर स्वामी विवेकानंद सार्धशती वर्ष के अंतर्गत आयोजित युवा दम्पति सम्मेलन को संवोधित कर रही थीं।
सुश्री भिड़े ने आगे कहा कि स्त्री की संवर्धन शक्ति से न केवल परिवार वरन सम्पूर्ण समाज, राष्ट्र और सृष्टि की सम्यक वृद्धि होती है । दुर्भाग्य से आज संयुक्त परिवार व्यवस्था का ह्रास होने से भारत में बच्चों के लिए दादा दादी, ताऊ चाचा जैसे शॉक ओब्जर्बर कम होते जा रहे हैं। दूसरी और बच्चों की शक्ति को गलत दिशा देने के षडयंत्र देश में चल रहे हैं । आज के जटिल वातावरण में परिवार चलाने का दायित्व कैसे पूरा हो, यह चिंतन का विषय है। अच्छा परिवार अर्थात धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों की प्राप्ति करने को प्रवृत्त उद्देश्यपूर्ण परिवार । पुरुषार्थ से धन कमाना, किन्तु धर्म धर्माधारित। कामनाओं की पूर्ती करें पर धर्माधारित। प्रजनन का अर्थ है, जो जन्मा है उसकी प्रगति अर्थात बच्चे माता पिता से अधिक श्रेष्ठ बनें, आगे जाएँ। बच्चों को अच्छा शरीर, अच्छा मन, अच्छी बुद्धि कैसे मिले इसकी योजना पूर्वक चिंता करना माता पिता का कर्तव्य है। बच्चों को आरामतलब बनाने से वे सामर्थ्यशाली नहीं बनेंगे। उनमें बचपन से श्रम करने की, व्यवस्थित रहने की आदत होना चाहिए। पांच वर्ष की आयु तक बच्चों की सारसंभाल केयर, उसके बाद सोलह वर्ष की आयु तक उन्हें ढालना मोल्ड करना, तत्पश्चात समझाईस शेयर एंड सजेस्ट।
स्वामी विवेकानंद कहते थे कि वेदान्त व्यवहारिक होना चाहिए। सत्य सार्वभौम है, वह कभी नहीं बदलता। समाज के अनुसार सत्य नहीं बदलेगा, सत्य के अनुसार समाज को बदलना होगा। जो सत्य के अनुसार नहीं बदलता वह समाज नष्ट हो जाता है। कोई गुरुत्वाकर्षण को न माने उससे गुरुत्वाकर्षण प्रभावित नहीं होता, किन्तु न मानने वाला अगर चौथी मंजिल से यह मानकर कूद पड़े की वह जमीन पर नहीं गिरेगा, आसमान में तैरेगा, तो उसे क्या कहा जाएगा। वह अगर कूद ही पड़े तो शरीर तो नियमानुसार जमीन पर आएगा ही, हाँ आत्मा जरूर ऊपर पहुँच जायेगी । यदि हम भी अपनी सत्य आधारित आदर्श जीवन पद्धति से दूर जायेंगे तो विनाश की और ही जायेंगे।
सम्मेलन की अध्यक्षता आई पी एस ग्रुप की अध्यक्ष श्रीमती सुनीता सिंह ने की तथा संचालन श्रीमती साधना जैन ने किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में भारत माता तथा माँ सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलन हुआ। कार्यक्रम में दम्पत्तियों के बीच एक दूसरे को कितना समझे शीर्षक से एक रोचक प्रतियोगिता करवाई गई तथा प्रतियोगिता के तीन विजेताओं को तुलसी पौधा उपहार स्वरुप दिया गया। अंत में भारत माता के चित्र के सम्मुख पुष्पांजली के साथ आदर्श परिवार के लिए १५ सूत्रीय संकल्प सबने लिए । कार्यक्रम में स्वामी विवेकानंद सार्धशती आयोजन समिति की संवर्धिनी प्रांत संयोजिका सुश्री शशि ठाकुर, भोपाल विभाग संवर्धिनी संयोजिका श्रीमती प्रीती उपाध्याय, सार्धशती आयोजन के प्रदेश सचिव व प्रांत संयोजक सोमकांत उमालकर, सह प्रांत संयोजक मनोज पाठक, रा.स्व.संघ के विभाग संघचालक कांतीलाल चतर, विवेकानंद केंद्र की जीवन व्रती प्रांत संगठक सुश्री शीतल दीदी, विवेकानंद केंद्र के प्रांत प्रमुख वरिष्ठ पत्रकार रामभुवन सिंह कुशवाह, विभाग संयोजक संतोष मीना, सहसंयोजक डा. शैलेन्द्र सिंह, प्रचार प्रमुख प्रदीप त्रिपाठी तथा बड़ी संख्या में दंपत्ति उपस्थित थे।

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