सोमवार, 5 सितंबर 2011

स्ट्रोक में मस्तिष्क का कुछ हिस्सा रक्त-प्रवाह बाधित होनेके कारण मृत होने लगता है।


कारण
स्ट्रोक में मस्तिष्क का कुछ हिस्सा रक्त-प्रवाह बाधित होनेके कारण मृत होने लगता है। मुख्यतः स्ट्रोक दो प्रकार का होता है। पहला है अरक्तता या इस्केमिक स्ट्रोक जो सबसे आम है और किसी धमनी के अवरुद्ध होने की वजह से होता है। दूसराहै रक्तस्राव दौरा या हेमोरेजिकस्ट्रोक जो किसी रक्त-वाहिका के फटने या रिसाव होने पर होता है। एक तीसरे प्रकार काछोटा और अस्थाई दौरा भी होता है जिसे क्षणिक-अरक्ततादौरा या Transient Ischemic Attack (TIA) कहते हैं, इसमेंमस्तिष्क का रक्त-प्रवाह थोड़ी देर के लिए बाधित होता है।
1- अरक्तता दौरा या इस्केमिक स्ट्रोक –
80-85 प्रतिशत स्ट्रोक इस्केमिक स्ट्रोक ही होते हैं। यहमस्तिष्क की किसी धमनी के संकीर्ण या अवरुद्ध होने के कारण होता है। यह स्ट्रोक भी दो विकृतियों के कारण होता है।
थ्रोम्बोटिक स्ट्रोक – यह स्ट्रोक मस्तिष्क को रक्त पहुँचाने वाली कोई धमनी जैसे केरोटिड या मस्तिष्क की कोई अन्य धमनी (सेरीब्रल,वर्ट्रिब्रोबेसीलर या कोई छोटी धमनी) में खून जम जाने या थक्का (Clot)बनने से होता है। एथेरोस्क्लिरोसिस रोग में धमनियों की भीतरी सतह पर फैट जमा होजाता है, जिसे प्लॉक कहते हैं। थ्रोम्बोटिक स्ट्रोक इस प्लॉक पर खून का थक्का बनजाने से धमनी में आई रुकावट के कारण होता है।
एम्बोलिक स्ट्रोक – में मस्तिष्क से दूर कहीं किसी रक्त-वाहिका में बना (अमूमन हृदय में) खून काथक्का या कोई कचरा रक्त के साथ बह कर मस्तिष्क की किसी पतली धमनी में आकर फंस जाताहै और रक्त के प्रवाह में रुकावट पैदा करता है। इस तरह के थक्के को एम्बोलस कहतेहैं। यह एम्बोलस प्रायः हृदय के दोनों ऊपरी कक्षों (Atria याआलिन्द) के असामान्य रूप से धड़कने (AtrialFibrillation) से बनता है। आलिन्दों के असामान्य और अनियमित तरीकेसे धड़कने (या फड़फड़ाने) से हृदय खून को ठीक से पंप नहीं कर पाता है, हृदय मेंएकत्रित खून के थक्के बन जाते हैं जो रक्तप्रवाह में बह कर मस्तिष्क की धमनी में जाकर फंस जाते हैं ।
2- रक्तस्राव दौरा या हेमोरेजिक स्ट्रोक –
हेमोरेजिक स्ट्रोकमस्तिष्क की किसी रक्त-वाहिका मेंरक्तस्राव या रिसाव होने के कारण होता है। यह इस्केमिक स्ट्रोक से ज्यादा गंभीररोग है। यह मुख्यतः रक्तचाप के बहुत बढ़ जाने, रक्त-वाहिका में कमजोरी से आयेफुलाव (Aneurysms) या नसों की किसी जन्मजात विकृति जैसे ArteriovenousMalformation के फट जाने से होता है। हेमोरेजिक स्ट्रोक भी दो तरहके होते हैं।
इन्ट्राक्रेनियल हेमोरेज - इस स्ट्रोक में मस्तिष्क की कोई नस फट जाती है, रक्तस्राव होता है जो आसपास फैलजाता और मस्तिष्क के ऊतकों को क्षतिपहुँचाता है। रक्त-वाहिका में रिसाव होजाने से आगे की मस्तिष्क कोशिकाओं को रक्त की आपूर्ति भी घट जाती है जिसकेफलस्वरूप वह क्षेत्र भी क्षतिग्रस्त हो जाता है। इस स्ट्रोक का प्रमुख कारणउच्च-रक्तचाप है। कालान्तर में उच्च-रक्तचाप के कारण रक्त-वाहिकाएँ कड़ी, कमजोर औरभंगुर हो जाती हैं, जो रक्तचाप के बढ़ने से फट जाती हैं।
सबअरेकनोयड हेमोरेज – इस स्ट्रोक मेंरक्तस्राव मस्तिष्क की सतह या सतह के समीप की किसी वाहिका में होता है और रक्तमस्तिष्क और कपाल के बीच की जगह (सबअरेकनोयड स्पेस) में एकत्रित हो जाता है। इस रक्त-स्रावके होते समय रोगी को खोपड़ी में बिजली कड़कने जैसी आवाज के साथ अचानक प्रचण्ड दर्दहोता है और उसे लगता है जैसे उसका सिर फट जायेगा। यह स्ट्रोक मुख्यतः रक्त-वाहिकामें जन्मजात या बाद में बने एन्युरिज्म (वाहिका का गुब्बारे की तरह कमजोर होकर फूलजाना) के फट जाने से होता है। रक्तस्राव के बाद मस्तिष्क की वाहिकाओं में आकर्ष (vasospasm) हो जाता हैं जिससे भी आसपास के मस्तिष्क ऊतक क्षतिग्रस्त होते हैं।
स्ट्रोक के जोखिमघटक
परिवार में किसी को स्ट्रोक या दिलका दौरा पड़ा हो या स्वयं रोगी को दिल का दौरा या TIA हुआ हो।
उम्र 55 वर्ष से ज्यादा हो।
मधुमेह - यदिआपको मधुमेह है तो निश्चित तौर पर आपको स्ट्रोक का खतरा भी काफी बढ़ जाता है। सामान्यतः जब मस्तिष्क की कोई धमनी में रुकावट आती है तो उसके आसपास कीधमनियां उस अंग को रक्त पहुँचाने की कौशिश करती हैं, लेकिन डायबिटीज के रोगी मेंआसपास की ये धमनियां भी एथेरोस्क्लिरोसिस (धमनियों का कड़ा होना) के कारण काफी हदतक खराब हो चुकी होती हैं और रक्त की कमी से जूझते मस्तिष्क को कोई राहत देने मेंअसमर्थ होती है। यानी डायबिटीज में स्ट्रोक से मस्तिष्क को क्षति अधिक होतीहै। रक्तचाप 115/75 mmHg से ज्यादा होना स्ट्रोक का जाखिम घटक माना गया है।
सिकल-सेल एनीमिया, माइग्रेन औरफाइब्रोमस्कुलर डिस्पेप्सिया।
निष्क्रिय जीवनशैली, स्थूलता, अति-मदिरापान,धूम्रपान या परोक्ष धूम्रपान और कॉलेस्ट्रोल 200 mg/dL से अधिक होना।
गर्भनिरोधक गोलियाँ, हार्मोन्स जैसे इस्ट्रोजन, नशीली दवाइयां जैसेकोकीन आदि।
हृदयरोग - हृदयपात (heart failure),संक्रमण, केरोटिड स्टिनोसिस, माइट्रल स्टिनोसिस और अनियमित हृदय अनुक्रम (abnormalheart rhythm)।
क्षणिक अरक्तता दौरा या Transient ischemic attack (TIA)


इसमें रोगी को लक्षण तो स्ट्रोक जैसेही होते हैं, जो थोड़ी ही देर (प्रायः 24 घन्टे से कम) रहते हैं
टी.आई.ए. होने के पाँच साल के अन्दर 35% लोगों को पूर्ण स्ट्रोक होने की संभावना रहती है, जिनमेंसे 50% को तो पहले महीने में ही स्ट्रोक हो जाता है। सच्चाई यह हैकि टी.आइ.ए. हमे चेतावनी देता है और कहता है – मानव अभी भी समय है सतर्क हो जाइये।जाँच करवा कर बचाव की दिशा में चलिये।
प्रारंभिकलक्षण


दौरा पड़ने का समय ध्यान रखें क्योकिउपचार करते समय कई निर्णय इसी पर निर्भर करेंगे। स्ट्रोक या दौरे के निम्न लक्षणहोते हैं।
चलने में दिक्कत होने लगे – यदि रोगी अचानक लड़खड़ाने लगे या चक्कर आ जाये, शरीर कासंतुलन और सामंजस्य बिगड़ने लगे यो समझ लीजिये उसे दौरा पड़ा है।
बात करने और समझने में परेशानी होनेलगे – रोगी भ्रमित और अस्तव्यस्त लगता है, वह धीरे,अस्पष्ट तथा लड़खाकर मुश्किल से बोल पाताहै, अपनी तकलीफ बतलाने के लिए उसे सही शब्द याद नहीं आ पाते हैं। हम समझ नहीं पातेहैं कि वह क्या कहना चाहता है।
चेहरे या शरीर में एक तरफ पक्षाघात(लकवा) या सुन्नता – रोगी के शरीर में एक तरफ अचानककमजोरी, सुन्नता या लकवा हो जाता है। यदि रोगी अपने दोनों हाथ सीधे फैलाने कीकौशिश करता है तो एक हाथ नीचे झुक जाता है। मुँह की मांस-पेशिया कमजोर होने सेहोंठ एक तरफ लटक जाते हैं और मुँह से लार टपकने लगती है।
एक या दोनों आँखों से देखने मेंकठिनाई हो – रोगी को एक या दोनों आँखों से धुँधलादिखाई देने लगे, हर चीज दो दो दिखाई दे या आँखों के आगे अंधेरा छा जाये।
तेज सिर दर्द – रोगी को उलटी या चक्कर के साथइतना तेज सिर दर्द हो कि उसे लगे जैसे उसका सिर फट जायेगा। रोगी कहे कि उसे ऐसा सिर दर्द जीवन में कभी नहीं हुआ।

स्ट्रोकके प्रकार
मिडिलसेरीब्रल-आर्ट्री स्ट्रोक या MCA Stroke
MCA में रुकावट आने से मस्तिष्क में जिस तरफ क्षति हुई है उसके विपरीत या उलटीतरफ शरीर की माँस-पेशियों में कमजोरी,लकवा और संवेदना विकार होता है। तथा साथ ही जिस तरफ क्षति हुई है उस तरफअर्ध-दृष्टिदोष (hemianopsia) आ जाता है अर्थात उस तरफअंधापन आ जाता है तथा रोगी की निगाहें उसीतरफ रहती हैं। रोगी अपने मित्रों, रिश्तेदारों या चीजों को पहचाननहीं पाता है। यदि स्ट्रोक प्रमुख गोलार्ध(dominant hemisphere) में हुआ है तो रोगी को बोलने या समझनेमें परेशानी होती है। लेकिन स्ट्रोक अप्रमुख-गोलार्ध (Nondominant hemisphere) में हुआ है तो बेपरवाही, बेखबरी और बेखुदी जैसेलक्षण होते हैं। चूँकि MCA मस्तिष्क में बाहों और हाथों केनियंत्रण-क्षेत्र को रक्त की आपूर्ति करती है इसलिए कमजोरी, लकवाया संवेदना-विकार आदि लक्षण पैरों की अपेक्षा हाथों में ज्यादा होते हैं।
ऐन्टीरियरसेरीब्रल आर्टरी स्ट्रोक या ACA स्ट्रोक
ACA स्ट्रोक मुख्यतः फ्रन्टल लोब के कार्यों को प्रभावित करता है जैसे उग्रव्यवहार, शब्दों, जुमलों या मुद्राओंको अकारण बार-बार दोहराना, चैतन्यता विकार (alteredmental status), सही निर्णय न ले पाना, ग्रेस्पिंगव सकिंग रिफ्लेक्स आदि। ACA में रुकावट आने से मस्तिष्क में जिस तरफ क्षति हुई है उसके विपरीत या उलटीतरफ मांस-पेशियों में कमजारी, अक्षमता तथा संवेदना-दोष,लड़खड़ा कर चलना और मूत्र-असंयमता (urinary incontinence) जैसे लक्षणहोते हैं।
पोस्टीरियरसेरीब्रल-आर्ट्री स्ट्रोक या PCA Stroke
PCAStroke में दृष्टि और विचार संबन्धी विकार होते हैं जैसेअर्ध-दृष्टिदोष (hemianopsia) अर्थात एक तरफ अंधापन, मस्तिष्क-जनित अंधापन, घर वालों व परिजनों को नपहचान पाना (visual agnosia), चैतन्यता विकार (alteredmental status), स्मृतिदोष आदि।
वर्टीब्रोबेसीलरआर्टरी स्ट्रोक
वर्टीब्रोबेसीलरआर्टरी स्ट्रोक में क्रेनियल-नाड़ियों, सेरीबेलम औरब्रेन-स्टेम से संबन्धित विविध और विस्तृत लक्षण होने के कारण इसको पकड़ पाना बहुतमुश्किल होता है। इसमें क्रेनियल-नाड़ी विकार स्ट्रोक की तरफ और मोटर विकार उलटीतरफ होते हैं। इसके प्रमुख लक्षण हैं चक्कर आना, आँख काअकारण अविरत हिलते रहना (Nystagmus), द्विदृष्टिता (Diplopia),निगलने में द्क्कत (Dysphagia), अटक-अटक करबोलना (Dysarthria), चेहरे में संवेदना-विकार (Facialhypesthesia), मूर्छा (Syncope), दृष्टि-क्षेत्रदोष (Visual field deficits), लड़खड़ा कर चलना (Ataxia)आदि।
लेक्युनरस्ट्रोक
लेक्युनरस्ट्रोक मस्तिष्क की गहराई में स्थित छोटी-छोटी धमनियों के अवरोध के कारण होता है, जिसका माप बहुत छोटा प्रायः 2-20 मिलिमीटर होता है। इसमें या तो केवलचालक-विकार (Motor Symptoms) होंगे या फिर केवलसंवेदना-विकार होंगे। कभी केवल लड़खड़ा कर चलने की तकलीफ हो सकती है। छोटा होने केकारण इसमें प्रायः स्मृति, बोधन, वाणीऔर चैतन्यता संबन्धी लक्षण नहीं होते हैं।
दुष्प्रभाव
स्ट्रोकके कारण कई अस्थाई या स्थाई अक्षमता या अपंगता हो सकती है जो इस बात पर निर्भरकरती है कि रक्त का प्रवाह मस्तिष्क के किस भाग में और कितनी देर बन्द रहा। स्ट्रोक में निम्न अक्षमता या अपंगता हो सकतीहै।
पक्षाघात- माँस-पेशियों में दुर्बलता व गतिहीनता– स्ट्रोक मेंमांस-पेशियाँ दुर्बल, गतिहीन, बेकार, निष्क्रिय और निर्जीव सी हो जाती हैं।स्ट्रोक के कारण मस्तिष्क में जिस तरफ क्षति हुई है उसके विपरीत या उलटी तरफ शरीरकी माँस-पेशियों में कमजोरी और लकवा पड़ताहै। अर्थात यदि मस्तिष्क में खराबी बांई तरफ हुई है तो शरीर का दायां भाग लकवा-ग्रस्त होता है। यदि पक्षाघात या लकवा शरीर के आधे भाग को प्रभावित करताहै तो इसे हेमीप्लेजिया (Hemiplegia) और आधे शरीर में आई माँस-पेशियों की दुर्बलता याकमजोरी को हेमीपरेसिस (Hemiparesis) कहते हैं। हेमीपरेसिस या हेमीप्लेजिया के कारण रोगी को चलने-फिरने या कोई चीज पकड़ने में दिक्कतहोती है।
कभी कुछ मांस-पेशियों का एक समूहबेकार हो जाता है जैसे कि बेल्स पाल्सी में आधे चहेरे की पेशियां लकवा-ग्रस्त होती हैं। दौरा पड़ने पर रोगी के मुँह और गले की मांस-पेशियाँकमजोर और निष्क्रिय हो जाती हैं और उन पर रोगी का नियंत्रण नहीं रहता है, जिससे उसेनिगलने और बोलने में दिक्कत (dysphagia और dysarthria) हो सकती है। रोगी शरीर मेंसंतुलन और सामंजस्य बनाये रखने में (ataxia) भी असमर्थ महसूसकरता है।
संवेदनात्मक(Sensory) विकारऔर दर्द – स्ट्रोक में स्पर्श, दर्द,तापमान, गुंजन आदि संवेदनाओं को महसूस करनेकी क्षमता कम हो जाती है। पक्षाघात से ग्रस्त पैर या हाथ में दर्द, सुन्नता, चुभन,जलन या झनझनाहड़ (paresthesia) हो सकती है। स्मृति, विचार और सीखने की योग्यता कमजोर पड़ जाती है। कुछ रोगियों को अपने लकवा-ग्रस्त हाथ या पैर की अनुभूति ही नहीं होती है। कई रोगी हाथ या पैर केअसहनीय दर्द से परेशान रहते हैं। यह दर्द कई बार गतिहीन जोड़ों आई अकड़न की वजह सेभी होता है। माँस-पेशियों में अकड़न और जकड़न आ जाना सामान्य बात है। उसके हाथ में ठंड के प्रति संवेदना बहुत बढ़सकती है। यह दुष्प्रभाव आमतौर पर स्ट्रोक के कई हफ्तों के बाद होता है। संवेदनात्मक विकार के कारण मूत्रत्याग और मलविसर्जन पर नियंत्रण भी कमजोर पड़ जाताहै।
वाणी, भाषा और संप्रेक्षण विकार (Speech, Language and Communicationdisabilities) -
स्ट्रोकके 25% रोगियों को बोलने, पढ़ने, लिखने और समझने में दिक्कत होती है। अपने विचारोंको भाषा और वाणी के माध्यम से व्यक्त न कर पाने को वाचाघात या (aphasia) कहते हैं। स्मृति, विचार और सीखने की योग्यता कमजोर पड़ जाती है। कभी रोगी को उपयुक्त शब्द या वाक्य याद तो होता है पर वहबोल नहीं पाता है इसे वाणीदोष (dysarthria) कहते हैं।
बोधन,विचार और स्मृति विकार (Cognitive, Thought and MemoryProblems)– स्ट्रोक रोगी की सजगता और अल्पकालीनस्मृति का ह्रास होता है। याददाश्त कमजोर पड़ जाती है या रोगी भ्रमित, अस्तव्यस्त,बुद्धिहीन और विवेकहीन दिखाई देता है। रोगी कोई योजना बनाने, नया काम सीखने, निर्देशों का पालन करने में असमर्थमहसूस करता है। कई रोगियों को निर्णय लेने, तर्क-वितर्क करने और चीजों को समझनेमें बहुत दिक्कत होती है। कई बार रोगी को अपने शरीर में आई अयोग्यता और अपंगता का अनुमान और अनुभूति भीनहीं होती है।
भावनात्मकविकार (Emotional Disturbances) – स्ट्रोक से रोगी में कई भावनात्मक और व्यक्तित्व सम्बंधी परिवर्तन होते हैं। स्ट्रोक के रोगी अक्सर भय, चिंता, तनाव, कुंठा,क्रोध, उग्रता, संताप, अकेलेपन और अवसाद का शिकार हो ही जाते हैं। रोगी अपनीभावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता है और उसके लिए अकारण चीखना, चिल्लाना,हंसना या मुस्कुराना सामान्य बात हो जाती है। उन्हे अपने दैनिक कार्य करने में भी कठिनाईहोती है और परिवार के किसी सदस्य या नौकर पर आश्रित रहना पड़ता हैं।
लैंगिक विकार – स्ट्रोक के बाद लैंगिक समस्याएं होनास्वाभाविक बात है। स्ट्रोक के कारण रोगी और उसके जीवनसाथी के आपसी रूमानी संबन्धोंमें शिथिलता आ जाती है। कई बार स्ट्रोक के वर्षों बाद तक रोगी लैंगिक अयोग्यता काशिकार बना रहता है। स्ट्रोक के बाद दी जाने वाली डिप्रेशन की दवाइयाँ भी लैंगिकविकार पैदा करती है। माँस-पेशियों में दर्द, एंठन, खिंचाव, जोड़ों में आईजकड़न और शारीरिक निष्चलता भी लैंगिकसंसर्ग को अरुचिकर और कष्टदायक बना देती है। स्ट्रोक के कारण जननेन्द्रियों मेंचेतना और संवेदना भी बहुत कम हो जाती है, पुरुषों में स्तंभनदोष होना सामान्य बातहै और मस्तिष्क में कामेच्छा और लैंगिक हार्मोन्स को नियंत्रित करने वाला उपांगहाइपोथेलेमस भी क्षतिग्रस्त हो जाता है।
परीक्षणऔर निदान
स्ट्रोक का सही उपचार इस बात पर निर्भर करता हैकि रोगी को स्ट्रोक इस्केमिक है या हेमोरेजिक है और मस्तिष्क के किस हिस्से में नुकसानहुआ है। कई बार स्ट्रोक जैसे लक्षण मस्तिष्क में अर्बुद (Tumor)तथा किसी दवा के प्रभाव से भी हो सकते हैं। डॉक्टर इन सबकी जाँच करेगा। वह स्ट्रोकके जोखिम का आंकलन करने के लिए भी कुछ परीक्षण करेगा।
शारीरिक परीक्षण – डॉक्टर रोगी और उसके परिजनों से विस्तार में पूछताछ करेगा कि रोगी को क्याक्या तकलीफ हुई, कब शुरू हुई और तब वह क्या कर रहा था। फिर देखेगा कि क्या रोगी कोअभी भी वह तकलीफ है। वह यह भी पूछेगा कि क्या रोगी को कभी सिर में चोट लगी थी औरवह कौन सी दवाइयाँ ले रहा है। वह पूछेगा कि रोगी को या परिवार के किसी सदस्य कोकभी हृदयरोग, स्ट्रोक या टीआईए (TIA) तो नहीं हुआ था।इसके बाद वह रोगी का रक्तचाप नापेगा और स्टेथोस्कोप से हृदय और गर्दन में केरोटिडधमनी की जाँच करेगा और पता लगा लेगा कि केरोटिड धमनी में एथेरोस्क्लिरोसिस तो नहींहुआ है। वह ऑफ्थेल्मोस्कोप द्वारा आँखों के दृष्टि-पटल की जाँच करके पता लगा लेगाकि दृष्टि-पटल पर रक्त के थक्के या कॉलेस्ट्रोल के क्रिस्टल तो नहीं बनेंहैं।
रोगी केप्रयोगशाला-परीक्षण स्ट्रोक के कारण और अन्य सह-विकारों के बारे में जानने केउद्देश्य से किये जाते हैं।
संम्पूर्ण रक्त-परीक्षण (Complete Blood CellCount) -यह रक्त की प्रमुख जांच है जिससेस्ट्रोक के कुछ अन्य कारणों पोलीसाइथीमिया, थ्रोम्बोसाइटोसिस, थ्रोम्बोसाइटोपीनिया,ल्युकीमिया आदि की जानकारी मिलती है
रक्तरसायन-परीक्षण (Blood Chemistry Panel) - इसमें रक्त शर्करा, युरिया, क्रियेटिनीन,कोएगुलेशन स्टडीज (BT, CT, PT, PTT, Fibrinogen etc.)आदि परीक्षण किये जाते हैं। यदि एन्टीकोएगुलेन्ट देने हों तो कोएगुलेशन स्टडीज जरूरीहोती है और इनसे कोएगुलोपैथी की जानकारी भी मिलती है। हृदय के एन्जाइम्स(ट्रांसएमाइनेज) और बायोमार्कर्स भी किये जाते हैं क्योंकि स्ट्रोक और हृदयरोग कासम्बंध चोली-दामन का होता है। ब्लड गैस एनेलीसिस भी कर लिया जाता है ताकि रक्त मेंऑक्सिजन का स्तर और अम्ल-क्षार संतुलन का अनुमान हो सके।


इनके अलावा जरूरतपड़ने पर लिपिड प्रोफाइल, प्रेगनेन्सी टेस्ट, रियुमेटॉयड फेक्टर, ई.एस.आर.,एन्टीन्युक्लियर बॉडी, होमोसिस्टीन आदि भी किये जाते हैं। मेनिन्जाइटिस औरसबअरेक्नॉयड हेमरेज को पहचानने के लिए लंबर-पंक्चर किया जाता है।
सी.टी.स्केन
स्ट्रोक में सी.टी.स्केन सबसेमहत्वपूर्ण और आवश्यक जांच है। सी.टी.स्केन मस्तिष्क की संरचना का सटीक और त्रिआयामीचित्रण करता है। हालांकिएम.आर.आई. की तस्वीरें ज्यादा अच्छी और साफ होती हैं परन्तु स्ट्रोकके आरंभिक निदान में प्लेन सी.टी.स्केनकई कारणों से एम.आर.आई. से भी बढ़िया और सुविधाजनक माना जाता है क्योंकि यह हरजगह उपलब्ध होता है और दस मिनट से कम में हो जाता है। यह बहुत अहम बात है क्योंकि यहाँ सुरक्षित समय की खिड़की (Time Window) बहुत छोटी होती है। दूसरा रोगी के शरीर में पेसमेकर, एन्युरिज्मक्लिप आदि लगे होने के कारण एम.आर.आई. करना संभव न हो तो भी सी.टी.स्केनकिया जा सकता है। बिना दवा के किये गये सी.टी.स्केन से मस्तिष्क की संरचना और रक्तस्रावकी जानकारी मिल जाती है जिससे इस्केमिक और हेमोरेजिकस्ट्रोक को पहचानना आसान हो जाता है। बाद में जब भी फुरसत और मौका मिलता है याजरूरी होता है एम.आर.आई. करवाली जाती है।
सी.टी.एंजियोएग्राफी (CTA) एक विशेष तरह का सी.टी.स्केन होता है जिसमें एक्सरे की दृष्टि सेअपारदर्शी दवा या डाई नस में छोड़ी जाती है और एक्सरे द्वारा रक्त वाहिकाओं केत्रिआयामी चित्र लिये जाते हैं। सी.टी.एंजियोएग्राफीसे एन्यूरिज्म, एट्रियोवीनस मालफोरमेशन्स या वाहिकाओं में रुकावट का पता चलता है।
केरोटिडअल्ट्रासाउन्ड – से हमे केरोटिड धमनी में बने रक्तके थक्कों और उसके संकुचन की जानकारीमिलती है। इसमें एक ट्रान्सडूसर कोकेरोटिड-धमनी के ऊपर की त्वचा पर धुमाया जाता है, इससे उच्च आवृत्ति कीध्वनि-तरंगे निकल कर ऊतकों में जाती हैं और परावर्तित होकर पुनः ट्रान्सडूसर मेंलौटती हैं और मशीन के पटल पर केरोटिड-धमनी का रेखा-चित्र प्रदर्शित करती है।
इकोकार्डियोग्राफी- एकविशेष तरह की अल्ट्रासाउन्ड तकनीक है जो हृदय की संरचना की जानकारी देती है। इसकेद्वारा चिकित्सक को मालूम हो जाता है कि कैसे हृदय में बना एम्बोलस रक्त-सरिता मेंबहता हुआ मस्तिष्क पहुँचा और स्ट्रोक का कारण बना। आपका चिकित्सक ट्रान्सइसोफेजियलइकोकार्डियोग्राफी (TEE) भी करना चाहेगा क्योंकि इसमेंहृदय की बेहद स्पष्ट और विस्तृत तस्वीरें खिंचती है। इसमें रोगी को एक लचीली रबरकी नली निगलनी पड़ती है, जिसमें एक छोटा सा ट्रान्सडूसर लगा होता है। क्योंकिट्रान्सडूसर भोजन नली में बिलकुल हृदय के समीप रहता है इसलिए यह हृदय की स्पष्टतस्वीरें खींचता है।
आरटीरियोग्राफी - यह तकनीक रक्त-वाहिकाओं के अपेक्षाकृत ज्यादास्पष्ट त्रिआयामी चित्र खींचती है। इसमें जांघ के ऊपरी हिस्से में एक छोटा सा चीरालगा कर रबर का एक महीन केथेटर जांघ कीधमनी में घुसा कर मस्तिष्क की मुख्यधमनियों केरोटिड या वर्टीब्रल मेंपहुँचाया जाता है। फिर डाई धमनी में छोड़ दी जाती है और मशीन एक्सरे द्वाराचित्र खींच लेती है।
चुम्बकीय गुन्जन चित्रीकरण या मेग्नेटिक रिजोनेन्स इमेजिंग (MRI) – स्ट्रोक के निदान और उपचार में एम.आर.आई. एक महान तकनीक साबित हुई है। इस तकनीक मेंतीव्र चुम्बकीय क्षेत्र और रेडियो तरंगों की मदद से मस्तिष्क की स्पष्टतम औरविस्तृत त्रिआयामी तस्वीरें खींची जाती हैं। एम.आर.आई. इस्केमिक स्ट्रोक सेक्षतिग्रस्त हुए मस्तिष्क के ऊतकों को प्रारंभिक अवस्था में ही पहचान लेती है।एम.आर.आई. मस्तिष्क के ऊतकों में चयापचय के कारण आई विकृतियों को भी पहचान लेतीहै। मेग्नेटिक रिजोनेन्स एन्जियोग्राफी (MRA) मेंनसों में डाई छोड़ कर मस्तिष्क और ग्रीवाकी धमनियों के चित्र लिये जाते हैं।
उपचार
स्ट्रोकएक आपातकालीन रोग है और यहाँ हर पल कीमती है। यहाँ समय ही जीवन रेखा है। स्ट्रोकमें मस्तिष्क की कोशिकायें मृत होने लगती हैं। ज्यों ही लगे कि रोगी को स्ट्रोकहुआ है, तुरन्त आपातकालीन एम्बुलेन्स से रोगी को पास के अच्छे चिकित्सा कैंन्द्रलेकर जाइये। निम्न बिन्दुओं को हमेशा ध्यान में रखिये।
स्ट्रोककी संजीवनी बूंटी - टिश्यु प्लाज्मिनोजन एक्टिवेटर rTPA - रोगी को यदि स्ट्रोक होने के तीनघन्टे के भीतर टिश्यु प्लाज्मिनोजन एक्टिवेटर दे दिया जाता है तो यह धमनियों मेंजमे खून के थक्के को घोल कर इनका पुनर्नलीकरण देता है और मस्तिष्क की रक्त-आपूर्ति कोपुनर्स्थापित कर देता है। कोई कहता है यह रोगी के जीवन की कुंजी है तो कोई इसेस्ट्रोक-उपचार का इंजन कहता है। हमेंसिर्फ तीन घन्टे का मुबारक वक्त मिलता है। इसी विन्डो ऑफ अपोर्चुनिटी में टिश्यु प्लाज्मिनोजनएक्टिवेटर देकर रोगी का जीवन बचाना होता है और यह तभी संभव है जब दौरा पड़ने के एकघन्टे के अन्दर रोगी अस्पताल पहुँचा दिया जाये।
TIME LOST = BRAIN LOST
TIME = BRAIN
रोगीको दौरा किस समय पड़ा या वह कब तक पूर्णतः स्वस्थ था या उसे दौरे के लक्षण कब पताचले यह याद रखना बहुत जरूरी है। इस समय को ठीक से याद रखें। इसके बिना टीपीए देने का निर्णय करना मुश्किलहोगा।
कईबार स्ट्रोक रात में होता है जब रोगी सो रहा होता है और उसे जगने पर ही पता चलताहै कि उसे स्ट्रोक हुआ है। दौरा पड़ने के बाद रात्रि में कई बार रोगी मदद के लिएपरिजनों को आवाज भी नहीं लगा पाता है। ऐसी स्थितियों में उपचार में विलम्ब होना स्वाभाविक है।
रोगीमें स्ट्रोक के लक्षण होने पर यह कभी मत सोचिये कि शायद रोगी थोड़ी देर में ठीक होजायेगा और तकलीफ बढ़ेगी तो बाद में अस्पताल ले चलेंगे।
डॉक्टरको घर पर मत बुलाइये, घर पर वह कुछ नहीं कर पायेगा।
रोगीको कोई घरेलू उपचार या एस्पिरिन मत दीजिये। डॉक्टर अपने हिसाब से जरूरत होगी तो देदेगा।
रोगीअपने वाहन से चिकित्सा कैंन्द्र जाने की कभी न सोचे।
कमाले–बुजदिली है पस्त होना अपनी नजरों में,
अगर थोड़ी-सी हिम्मत हो तो फिर क्या हो नहीं सकता।
प्रारंभिक उपचार
स्ट्रोक काउपचार इस बात पर निर्भर करता है कि रोगी को स्ट्रोक इस्केमिक है याहेमोरेजिक है। प्रारंभिक उपचार में निम्न पहलुओं को ध्यान में रखा जाता है।
स्ट्रोक के उपचार में यह आवश्यक है कि रोगी सेपूछताछ, रक्त आदि की जाँच, सी.टी.स्केन, अन्य आपातकालीन उपचार, सी.टी.स्केन का विश्लेषण, स्ट्रोक का निदान और आगेके उपचार की रूपरेखा बनाना आदि सभी कार्य एक घन्टे में पूरे कर लेना चाहिये।
स्ट्रोक के उपचार की मुख्य धुरी मस्तिष्क के अरक्तता क्षेत्र Penumbra (मस्तिष्क का वह भाग जो अरक्तता के कारण पूरी तरहक्षतिग्रस्त नहीं हुआ है) में रक्तप्रवाह को पुनर्स्थापित करना है। इसके लिएमस्तिष्क पर हुए अरक्तता-आघात की गंभीरता और अवधि को न्यूनतम किया जाता है। इसकेपहले कि मस्तिष्क के ऊतक स्थाई रूप मरने लगें टीपीए के इंजेक्शन से अवरुद्ध धमनीका पुनर्नलीकरण कर दिया जाता है।
दोनों हाथों की अच्छी शिराओं में 18 गॉज का केन्युलालगा कर शिरा-पथ तैयार किये जाते हैं, जिसके द्वारा आवश्यकतानुसार इन्जेक्शन और तरलद्रव्य चढ़ाये जायेंगे।
ऑक्सीजनदी जाती है यदि SPO2 92% से कम हो ताकि मस्तिष्क को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलतीरहे।
रोगीको यदि श्वसन लेने में दिक्कत हो तो समुचित उपचार किया जाता है।
हार्टअटेक के विपरीत स्ट्रोक में तुरन्त एस्पिरिन नहीं दी जाती है।
स्ट्रोकके साथ-साथ उसके सह-विकारों का उपचार भी आवश्यक है। ब्लड-शुगर पर नजर रखना और उसेसामान्य रखना जरूरी है। स्ट्रोक में रोगी को बुखार हो सकता है। ऐसी अवस्था मेंमुँह या मलद्वार से पेरासीटामोल दी जाती है।
स्ट्रोक के उपचार में सुरक्षित समय की खिड़की छोटी होने केकारण विशेषज्ञों ने निम्न प्रोटोकोल को ध्यान में रखने की सलाह दी है।
द्वार से डाक्टर की अवधि 10 मिनट
द्वार से सीटी स्केन की अवधि 25 मिनट
द्वार से सीटी स्केन की व्याख्या की अवधि 45 मिनट
द्वार से दवा की अवधि 60 मिनट
द्वार से आइ.सी.यू. बेड तक की अवधि 3 घन्टे
थ्रोम्बोलाइटिकउपचार -
थ्रोम्बोलाइटिक दवा (खून के थक्कोंको घोलने वाली दवा) इस्केमिक स्ट्रोक में मस्तिष्क का रक्तप्रवाह पुनर्स्थापित करती है औररोगी को लक्षण-मुक्त करने में बहुत सहायता करती है। लेकिन दुर्भाग्य से यह कुछरोगियों के मस्तिष्क में रक्तस्राव कर सकती है। इसलिए चिकित्सक सारे पहलुओं कोध्यान में रख कर बहुत सूझबूझ और विवेक से निर्णय लेता है कि रोगी को थ्रोम्बोलाइटिकदवा देनी चाहिये या नहीं।





स्ट्रोकके लिए रिकोम्बिनेन्ट डीएनए तकनीक से बनी सिर्फ एल्टीप्लेज (rTPA) ही अनुमो­­दित की गई है। यह rTPA स्ट्रोक केरोगी के लिए मूर्छित लक्ष्मण का जीवन बचाने के लिए वीर हनुमान द्वारा द्रोणगिरि पर्वतसे लाई गई संजीवनी बूटी के समान है। इसे स्ट्रोक होने के तीन घन्टे (ताजा शोध के नतीजों केअनुसार साढ़े चार घन्टे तक दी जा सकती है) के भीतर ही स्ट्रोक से होने वाली क्षतिको प्रभावशून्य करने और अपंगता को रोकने के लिए दिया जाता है। यह खून के थक्कों कोघोल देती है। इसे जितना जल्दी दिया जायेगा, स्वास्थ्य-लाभ उतनी जल्दी और अच्छा होगा। यह बहुत महँगी दवा है, 50मिलीग्राम की शीशी की कीमत 40,000 रुपये है। इसेहेमोरेजिक या रक्तस्रावी-स्ट्रोक में कभीनहीं दिया जाता है। क्योंकिइससे मस्तिष्क में रक्त-स्राव हो सकता है और लेने के देने पड़ सकते हैं। इसे बाँहकी शिरा में छोड़ा जाता है। इसे देने के बाद रोगी को कम से कम 24 घन्टे आई.सी.यू.में रखा जाता है और एहतियात रखी जाती है कि रक्तस्राव न हो। इसका सबसे घातकदुष्प्रभाव रक्तस्राव है। इसे निम्न स्थितियों में नहीं दिया जाता है।
रोगीकी उम्र 18 वर्ष से कम हो।
इन्ट्राक्रेनियलहेमोरेज।
हालमें ही दिल का दौरा पड़ा हो।
गर्भावस्थाव स्तनपान।
पिछलेतीन महीने में सिर में गहरी चोट लगी हो।
रक्तस्रावविकार।
पिछले14 दिन में रोगी की कोई शल्यक्रिया हुई हो।
मूत्रया मल में हाल के दिनों में रक्त आया हो।
रोगीएन्टीकोएगुलेन्ट दवायें प्रयोग कर रहा हो।
मूर्छाया कोमा।
आर.टी.पी.ए. या एल्टीप्लेज की मात्रा कीगणना निम्न सूत्र से की जाती है।
एल्टीप्लेजकुल मात्रा = 0.9 मिलीग्राम/ किलो शारीरिक भार के हिसाब से (अधिकतम मात्रा 90 मिलीग्राम)
इसमात्रा का 10% न्युरोलोजिस्ट द्वारा शिरा में60 सेकण्ड में धीरे-धीरे छोड़ा जाता है। शेष 90% मात्रा ड्रिपद्वारा एक घन्टे की अवधि में पूरी दे दी जाती है।
एस्पिरिन –
इस्केमिकस्ट्रोक के बाद दूसरे दौरे को रोकने और खून को पतला रखने के लिए एस्पिरिन सर्वश्रेष्ठऔर स्थापित दवा है। अमूमन इसकी 325 मिलीग्राम की गोली आपातकालीन कक्ष में दे दीजाती है। यदि रोगी पहले से एस्पिरिन ले रहा है तो इसकी मात्रा कम कर दी जाती है।रक्त को पतला रखने वाली अन्य दवायें जैसे डायपिरीडेमोल, कोमाडिन, हिपेरिन,टिक्लोपिडीन, क्लोपिडोग्रेल आदि भी प्रयोग की जाती हैं, परन्तु एस्पिरिन ही सबसेज्यादा प्रचलित है।
इडारावोन (Aravon)
यह एक नया औरउमदा प्रति-ऑक्सीकारक है जो 2001 से जापान में स्ट्रोक की प्रारंभिक अवस्था मेंसफलतापूर्वक प्रयोग में लिया जा रहा है।यह पहली सेरीब्रल न्यूरोप्रोटेक्टिव दवा है जो स्ट्रोक की प्राथमिक अवस्था मेंचमत्कारी असर दिखाती है। यह रियेक्टिव ऑक्सीजन स्पिसीज़ (ROS) को सफाया कर मस्तिष्क में अरक्तता से जन्मे प्रदाह या Inflamation(जिसके कारण मस्तिष्क में सूजन और कोशिकीय क्षति की वजह सेइनफार्क्शन हो जाता है) को शांत करता हैऔर शरीर के अन्य अंगों में भी ऑक्सीकारक तत्वों को चुन-चुन कर मारता है। यह एथेरोस्क्लिरोसिस की प्रगति को भी रोकता है।आरटी.पीए. के विपरीत इसे स्ट्रोक होने के 24 घन्टे के भीतर 30मिलि ग्राम सुबह शाम सेलाइन में मिला कर दिया जाता है। इसकी सुरक्षा खिड़की आरटी.पीए.से बड़ी होती है। इसे 14 दिन तक भी दिया जा सकता है। इसे इस्केमिक और हेमोरेजिक दोनोंतरह के स्ट्रोक में दिया जा सकता है।
सिटिकोलीन
यह एक सुरक्षित और स्मृतिवर्धक रसायन है जिसे स्ट्रोक के उपचार में प्रयोग में लियाजाता है। यह मस्तिष्क मेंफोस्फेटाइडिलकोलीन का स्तर बढ़ाता है। फोस्फेटाइडिलकोलीन मस्तिष्क की कोशिकाओं के लिए बहुत जरूरी यौगिकमाना गया है। साथ में यह मस्तिष्क के एक उपांग हिपोकेम्पस, जो स्मृति का कैन्द्रमाना जाता है, में एसिटाइलकोलीन का स्तर बढ़ाता है। एसीटाइलकोलीन एक नाड़ी संदेशवाहकहै जो विभिन्न नाड़ी कोशिकाओं में संपर्क और समन्वय बढ़ाता है। इसलिए सिटिकोलीनस्मृति और संज्ञानात्मकता (Cognition) में वृद्धिकरता है। यदि स्ट्रोक होने के 24 घन्टे केभीतर सिटिकोलीन दे दिया जाता है तो यह मस्तिष्क को क्षतिग्रस्त होने से बचाताहै। इसकी मौखिक मात्रा 1000-2000मिलिग्राम प्रतिदिन है, जिसे दो खुराक में विभाजित करके दिया जाता है। इसे शिरामें भी दिया जाता है। अनिद्रा, सिरदर्द,दस्त, उच्च (या निम्न) रक्तचाप, छाती में दर्द, धुँधली दृष्टि आदि इसकेपार्ष्वप्रभाव हैं। गर्भावस्था और स्तनपान में यह वर्जित है।
अस्पमाररोधी या एन्टीसीज्योर दवाएँ – हालांकि स्ट्रोक में सीज्योर यामिर्गी के जैसे दौरे बहुत कम पड़ते हैं। परन्तु यदि बार-बार पड़ें तो खतरनाकस्थिति बन जाती है। इनके लिए डायजेपाम और लोरेजेपाम पहले उपचार माने जाते हैं।
एन्टीहाइपरटेन्सिव दवाएँ – लेबेटालोल,एनालेप्रिल, निकार्डिपीन, सोडियम नाइट्रोप्रुसाइड आदि प्रयोग में ली जाती है। स्ट्रोकमें रक्तचाप नियंत्रण बहुत बुद्धिमानी से किया जाता है। आर.टी.पी.ए. देने के दौरान तो 24 घन्टे तक और ज्यादासतर्कता रखी जाती है। रक्तचाप के बढ़ने सेरक्तस्राव की संभावना बढ़ती है और ज्यादा कम हो जाये तो अरक्तता बढ़ सकती है।
यदि सिस्टोलिक रक्तचाप SBP 185 से अधिक या डायस्टोलिक रक्तचाप DBP110-139 बनारहे तो 10 मि.ग्रा. लेबेटालोल शिरा में 1-2 मिनट में दे दिया जाता है और रक्तचाप हर 5-10 मिनट केअन्तराल में नापा जाता है। यदि रक्तचाप कम न हो तो हर10-20 मिनट में 10 या 20 मि.ग्रा. लेबेटोल दिया जा सकता है। लेबेटालोल कीकुल मात्रा 150 मि.ग्रा. से अधिक न दी जाये। ध्यान रखें कि रक्तचाप कम भी न हो पाये।
यदि फिर भी डायस्टोलिकरक्तचाप 140 से अधिक बनारहे तो सोडियम नाइट्रोप्रुसाइड 0.5-10 mg/kg/minuteके हिसाब से शिरा में ड्रिप द्वारा छोड़ें। पूरी सतर्कता बरतें।
आपातकालीन शल्य उपचार –
पिछलेवर्षों में स्ट्रोक के उपचार में बहुत प्रगति हुई है और कई नई तकनीकें औरशल्य-क्रियाएं विकसित हुई है, जिन्हे चिकित्सक आज धड़ल्ले से प्रयोग कर रहे हैं औररोगियों को जीवन दान दे रहे है।
आल्टीप्लेज (rTPA) सीधा मस्तिष्क के अरक्तता-ग्रस्तक्षेत्र में छोड़ना चिकित्सक जांघ के ऊपरी हिस्से मेंचीरा लगा कर जांघ की धमनी में केथेटर डाल कर मस्तिष्क तक पहुँचा कर सीधा उस जगहछोड़ता है जहाँ धमनी में रुकावट आई है। इस तकनीक में सुरक्षित समय का झरोखा थोड़ाबड़ा होता है।
चिकित्सकधमनी में जमा खून का थक्का एक विशेष केथेटर के द्वारा पकड़ कर निकाल देते हैं औरधमनी का अवरोध तुरन्त ठीक हो जाता है।
केरोटिडएन्डआरटेक्टॉमी - स्ट्रोक के बाद दूसरे स्ट्रोक याटी.आई.ए. के जोखिम को कम करने के प्रयोजन से बुरी तरह अवरुद्ध केरोटिड या अन्यधमनी को साफ करने के लिए शल्यक्रिया भी की जाती है। इस क्रिया में शल्य-चिकित्सकगर्दन में स्थित केरोटिड धमनी के ऊपर और नीचे के दोनों सिरों को बाँध देता है, फिर केरोटिड धमनी मेंचीरा लगा कर धमनी के अन्दर जमा सारे प्लॉक को निकाल कर धमनी को पुनः सिल देता हैऔर धमनी के सिरों को खोल देता है। इस क्रिया से इस्केमिक स्ट्रोक का जोखिम कम होजाता है। हालांकि कभी-कभी धमनी के घावोंपर बने थक्के टूट कर हृदय या मस्तिष्क कीधमनियों में फँस सकते हैं और रोगी को हार्ट अटेक या स्ट्रोक हो सकता है।
एन्जियोप्लास्टीऔर स्टेन्ट - कोरोनरी बेलून एन्जियोप्लास्टी की भांति मस्तिष्क की प्लॉक से अवरुद्धधमनियों को बेलून से फुला कर चौड़ा कर दिया जाता है। इस क्रिया में एक बेलूनकेथेटर के सिरे पर विशिष्ट धातु का बना स्टेन्ट पिचकी हुई अवस्था में चढ़ाकरअवरुद्ध धमनी में घुसाया जाता है। जब केथेटर का अन्तिम छौर अवरोध तक पहुँच जाये तोबेलून को फुलाया जाता है, जिससे स्टेन्ट फैल कर लोक हो जाता है और धमनी को भी फैलादेता है। इसके बाद बेलून को पिचका कर केथेटर को वापस खींच लिया जाता है।
हेमोरेजिक स्ट्रोक का उपचार
हेमोरेजिक स्ट्रोक के उपचार का मुख्य उद्देश्यरक्तस्राव को रोकना और मस्तिष्क में रक्तस्राव के कारण बढ़ते दबाव को कम करना है।भविष्य में जोखिम कम करने हेतु शल्यक्रिया भी एक विकल्प है। यदि रोगी पहले से कोमाडिन या बिंबाणुरोधी दवाक्लोपिडोग्रेल ले रहा है तो उनके प्रभाव को निष्क्रिय करने के लिए उचित दवा यारक्त दिया जाता है। रक्तचाप को कम करने के लिए, सीज्योर को रोकने के लिए औरमस्तिष्क में वेजोस्पाज्म रोकने के लिए दवाएँ दी जाती हैं। हेमोरेजिकस्ट्रोक में टीपीए, एन्टीकोएगुलेन्ट्स और बिंबाणुरोधी (खून को पतला करने की दवाइयाँ) एस्पिरिन आदिकभी भी नहीं दी जाती हैं। क्योंकि येरक्तस्राव को बढ़ा सकती हैं।
ज्यों ही मस्तिष्क में रक्तस्राव रुक जाये रोगीको पूर्ण आराम और सपोर्टिव उपचार दिया जाता है। ताकि इस बीच मस्तिष्क में हुआरक्तस्राव घुलने लगे। यदि रक्तस्रावज्यादा हुआ हो तो मस्तिष्क से रक्त को निकालने और दबाव कम करने हेतु शल्यक्रिया कीजाती है। हेमोरेजिक स्ट्रोक में रक्त-वाहिकाओं के विकारों और असामान्यताओं को ठीक करने के लिए भी शल्यक्रिया की जाती है।स्ट्रोक के बाद या एन्युरिज्म या एट्रियोवीनस मालफोरमेशन्स (AVM) के फटने का जोखिम हो तो निम्न शल्य क्रियाएँ की जाती हैं।
एन्युरिज्म क्लिपिंग – एन्युरिज्म केआधार पर एक छोटा सा धातु का क्लिप लगा दिया जाता है और उसे मुख्य रक्त-प्रवाह सेअलग कर दिया जाता है, जिससे एन्युरिज्म से रक्तस्राव होने की संभावना खत्म हो जातीहै। क्लिप हमेशा लगा छोड़ दिया जाता है।
एवीएम (एट्रियोवीनसमालफोरमेशन्स) को शल्यक्रिया द्वारा निकाल देना - हालांकि बड़े और मस्तिष्क में गहराई पर स्थितएवीएम को निकाल पाना हमेशा संभव नहीं होता है। लेकिन छोटे एवीएम को आसानी से निकालदिया जाता है और एवीएम के फटने की संभावना तो समाप्त हो जाती है फिर भी रक्तस्रावका जोखिम तो रहता ही है।
स्ट्रोक से बचने के उपाय
यदि आपको डायबिटीज है और आपके चिकित्सक को लगता है किआपको एथेरोस्क्लिरोसिस (धमनियों का कड़ा होना) भी है तो वह आपको आहार एवं जीवनशैलीमें सुधार करने के लिए कहेगा तथा रक्त को पतला रखने के लिए कुछ दवाइयां भी देगा।स्ट्रोक के जोखिम को कम करने के लिए आपकोनिम्न बिंदुओं का सख्ती से पालन करने की सलाह देगा।
धूम्रपानतुरंत बंद करें।
नियमितलिपिड प्रोफाइल चेक करवाते रहें और यदि रक्त में LDL कोलेस्ट्रोल की मात्रा 100 mg/dl से ज्यादा है तोउसे कम करने हेतु दवाइयां लें।
फल,सब्जियाँ और रेशायुक्त भोजन खूब खायें।
कॉफी,संत्रप्त वसा, चीनी, रिफाइन्ड तेल, वनस्पति घी, एनीमल फैट, फास्ट फूड, और परिष्कृत फूड आदि का सेवन न करें।
मदिरापानएक पैग प्रतिदिन से ज्यादा कभी ना लें।
अपनावजन संतुलित रखें।
रक्त-चाप नियमित नपवाते रहें औरज्यादा रहे तो दवा लें।
चिकित्सक द्वारा बतलाए गये आहारनिर्देशों का पालन करें।
रोज तेज भ्रमण करे और व्यायाम करें।
इस आलेख का अंत मैं एक शेर के साथ कर रहा हूँ जो स्ट्रोक केरोगियों को समर्पित है।
जमाने से जो डरते हैं, जलीलो–खार होते हैं
बदल देते हैं जो माहौल वो खुद्दार होते हैं,
हजारों डूबते हैं नाखुदाओं के भरोसे पर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें